HI/Prabhupada 0391 - मानस देहो गेहो तात्पर्य

Revision as of 13:10, 12 July 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0391 - in all Languages Category:HI-Quotes - Unknown Date Category:HI-Quot...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

Purport to Manasa Deha Geha

मानस, देहो, गेहो, जो किछु मोर । यह भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा गाया एक गीत है । वे पूर्ण समर्पण की प्रक्रिया सिखा रहे हैं । मानस, देहो, गेहो, जो किछु मोर । सबसे पहले वह मन को समर्पण कर रहे हैं , क्योंकि मन मूल है सभी प्रकार के अटकलों का और आत्मसमर्पण , भक्ति सेवा प्रदान करने का मतलब है पहले मन को नियंत्रित करना । इसलिए वे कहते हैं मानस, मतलब "मन", फिर देह : " इन्द्रियॉ" शरीर । देह का मतलब है यह शरीर, शरीर का अर्थ है इंद्रियॉ । तो, अगर हम कृष्ण के कमल चरणों में पर्यत मन को आत्मसमर्पण करें, तो स्वतः इन्द्रियॉ भी आत्मसमर्पित हो जाती हैं । फिर, "मेरा घर" देह, गेहो । गेहो का मतलब है घर । जो किछु मोर । हमारे सभी संपत्ति इन तीन बातों को शामिल करती हैं; मन, शरीर और हमारा घर । तो भक्तिविनोद ठाकुर का प्रस्ताव है सब कुछ आत्मसमर्पण करना । अर्पिलू तुवा पदे, नन्द किशोर । नन्द किशर कृष्ण हैं । "तो मैं अापको मेरा शरीर, मेरा मन और मेरा घर समर्पण कर रहा हूँ ।" अब, सम्पदे विपदे, जीवने-मरणे : "या तो मैं खुशी में हूँ या मैं संकट में हूँ, या तो मैं जीवित हूँ या मैं मर गया हूँ ।" दाय मम गेला, तुवा अो-पद बरने: "अब मैं राहत महसूस कर रहा हूँ । मैं राहत महसूस कर रहा हूँ क्योंकि मैंने आपको सब कुछ पर्यत आत्मसमर्पण कर दिया है।" मारोबि राखोबि-जो इच्छा तोहारा: "अब यह आप पर निर्भर है, कि अाप मुझे रखना चाहते हो या मुझे मारना चाहते हो, यह आप पर निर्भर करता है ।" नित्य-दास प्रति तुवा अधिकारा: "आपको पूरा अधिकार है कुछ भी करने के लिए जो अापको सही लगता है अपने इस नौकर के संबंध में । मैं अापका अनन्त दास हूं ।" जन्मौबि मोइ इच्छा जदि तोर : "अापकी इच्छा हो तो" - क्योंकि एक भक्त घर वापस जाना चाहता है, वापस देवत्व को - इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर का प्रस्ताव है, "अगर अाप चाहते हैं कि मैं फिर से जन्म लूँ तो कोई बात नहीं ।" भक्त-ग्रहे जानि जन्म होय मोर: " केवल इतना अनुरोध है कि अगर मुझे जन्म लेना है तो, कृपया मुझे एक भक्त के घर में जन्म लेने का मौका दें । " किट-जन्म हौ जथा तुवा दास: " मुझे कोई आपत्ति नहीं है अगर मैं एक कीट के रूप में पैदा होता हूँ, लेकिन मुझे एक भक्त के घर में होना चाहिए ।" बहिर मुख ब्रह्म-जन्मे नाहि अास : "मुझे अभक्तों का जीवन पसंद नहीं है । भले ही मैं भगवान ब्रह्मा के रूप में पैदा क्यों ने हुअा हूँ । मैं भक्तों के साथ रहना चाहता हूँ "भुक्ति-मुक्ति-स्पृहा विहीण जे भक्त.: "मैं इस तरह का भक्त चाहता हूँ जिसे परवाह नहीं है भौतिक खुशी या आध्यात्मिक मुक्ति की ।" लभैते ताको संग अनुरक्त "मैं केवल इस तरह के शुद्ध भक्तों के साथ जुड़े होने की इच्छा रखता हूँ ।" जनक जननी, दयित, तनै: "अब, अभी से, आप मेरे पिता हो, अाप मेरे भाई हो, अाप मेरी बेटी हो, अाप मेरा बेटे हो अाप मेरे भगवान हो, अाप मेरे आध्यात्मिक गुरु हो, अाप मेरे पति हो, आप मेरे सब कुछ हो । " भक्तिविनोद कोहे, सुनो काना: "मेरे भगवान, काना - कृष्ण, आप राधारानी के प्रेमी हैं, लेकिन आप मेरा जीवन और आत्मा हैं, कृपया मुझे सुरक्षा दें ।"