HI/680217 - प्रद्युम्न को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस

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Letter to Pradyumna (Page 2 of 2)


5364 डब्ल्यू. पिको बुलेवार
लॉस एंजेल्स कैल 90019

17 फरवरी, 1968


मेरे प्रिय प्रद्युम्न,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे ब्रह्म संहिता का लिप्यंतरण और तुम्हारा 14 फरवरी का पत्र प्राप्त हो गए हैं। ये जो अच्छा कार्य तुमने किया है, इससे मैं बहुत ही खुश हूँ।

फिलहाल मैं अपने अनुवाद कार्य के लिए श्रीमद् भागवतम् का एक गीताप्रेस संस्करण उपयोग में ला रहा हूँ पर समय आने पर उसे मैं तुम्हारे पास भेज सकता हूँ और तुम तब द्वितीय और तृतीय स्कंध का लिप्यंतरण कर सकते हो। तो अगर तुम यह लिप्यंतरण कर सकते हो तो हमारे पास प्रचुर मात्रा में कार्य करने को है। इस मामले में तुम गौरसुन्दर के साथ काम कर सकते हो।

पुस्तकों की सूची के बारे में : एस. के. घोष की “लॉर्ड गौरान्ग” और बॉन महाराज की ”वेदेर परिचय” बेकार हैं और तुम्हें उन्हें प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। बाकी की पुस्तकें और गौड़ीय पत्र स्वीकार्य हैं। यदि तुम्हारे पास ज़ेरक्स यंत्र की खुली सुविधा है तो तुम कुछ छोटे साहित्यों की प्रतियां बना सकते हो। भक्ति पुरी, तीर्थ महारज का जहां तक प्रश्न है तो ये सब मेरे गुरुभाई हैं और उनका आदर करना चाहिए। लेकिन चूंकि वे मेरे गुरु महाराज की आज्ञा के विरुद्ध चले गए, इस कारणवश तुम्हें उनसे अंतरंग संबंध नहीं रखने चाहिए।

मैं जानकर खुश हूँ कि तुम बॉस्टन में कृष्ण भावनामृत प्रसार को बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत से काम कर रहे हो। मैं कहना चाहुंगा कि यह व्यावहारिक भक्ति, शास्त्रों को समझ पाने का रहस्य है। मेरे गुरु महाराज कहा करते थे कि जो कोई भक्तिमय सेवा में रत नहीं है, उसके लिए सारी पुस्तकों को पढ़ना, शहद के मर्तबान को बाहर से चाटने जैसा है। जो सोचता है कि पुस्तकें ही सबकुछ हैं, वह इतने में ही संतुष्ट है। पर हमें मर्तबान को खोलकर शहद को चखने का रहस्य जानना चाहिए। इस प्रकार से, यदि हम केवल एक पुस्तक या एक श्लोक समझ लें, तो परिपूर्णता मिल जाएगी। भगवान चैतन्य ने हमें अधिक पुस्तकें पढ़ने बारे में चेतावनी दी है। पर मैंने अमरीका में प्रचलन देखा है, अनेकों पुस्तकें लाने के बाद भी, एक को भी समझने में असमर्थ रह जाना। बहरहाल, गुरु की आज्ञा के पालन में निष्ठा से लगे रहकर, कृष्ण की कृपा से, तुम सर्वसिद्ध बन जाओगे। मैं सदैव कृष्ण से तुम्हारी, तम सभी निष्कपट आत्माओं की, कृष्ण भावनामृत में प्रगति हेतु प्रार्थना करता रहता हूँ। आशा करता हूँ कि तुम बिलकुल अच्छे से हो।

सर्वदा तुम्हार शुभाकांक्षी,

अहस्ताक्षरित