HI/700329 - महानन्द को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस

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Letter to Mahananda


1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034

29 मार्च, 1970


मेरे प्रिय महानन्द दास (Michael),

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे जप के लिए माला के साथ, दीक्षा के लिए अनुरोध करते हुए, तुम्हारा दिनांक 26 मार्च 1970 का पत्र प्राप्त हुआ है और मैं तुम्हें अपने दीक्षित शि,य के रूप में स्वीकार करके बहुत प्रसन्न हूँ। तुम्हारा दीक्षित नाम है महानन्द दास। मैंने तुम्हारी जपमाला पर विधिपूर्वक जप किया है और वे तुम्हें लौटाई जातीं हैं।

मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम प्रतिदिन सोलह माला जप, चार आधारभूत संयम के सिद्धांतों के आचरण व कृष्ण की सेवा में मेहनत से कार्य करने की हमारे कृष्णभावनाभावित जीवनशैली के अनुरूप सख्ती से जीवनयापन करते आ रहे हो। कृपया इसी प्रकार से जीवनयापन करते चलो और कृष्णभावनामृत में तुम्हारे जीवन की सफलता निश्चित है। सदैव दिव्य नाम, कृष्ण, का जप करते रहना, अनुशासनिक नियमों के अनुसार आचरण करना एवं कृष्ण की सेवा के लिए कार्य करना, आध्यात्मिक बल की उन्नति के लिए अनिवार्य कार्यक्रम हैं।

तुमने एक रोचक पंक्ति लिखी है कि, लगता है कि माया की तुममें कोई विशेष दिलचस्पी है। तो ऐसा प्रतीत होता है कि तुम इतने मेधावी हो कि माया की चालों को समझ जाओ। यह बहुत अच्छी बात है। हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि माया अथवा अंधकार एवं कृष्ण अथवा प्रकाश, का अस्तित्व एक दूसरे के आस पास ही है। तो यदि हम स्वयं को सदैव कृष्णभावनामृत में अथवा कृष्ण सूर्य के प्रकाश में हीं रखें तो अंधकार अथवा माया द्वारा आवृत्त हो जाने का शायद ही कोई मार्ग बचता है।

किन्तु थोड़ी सी लापरवाही भी, हमारे माया के चंगुल में डाल सकती है। वेदों में कृष्णभावनामृत के पथ की तुलना एक तेज़ धार उस्तरे से की गई है। यदि ध्यानपूर्वक प्रयोग में लाया जाए, तो उस्तरा साफ हजामत बनाने का लाभ देता। लेकिन थोड़ी सी बेपरवाही से गाल को लहु-लुहान कर देता है। तो हमें सदैव इस उदाहरण को याद रखना चाहिए और कृष्णभावनामृत की धार को ध्यानपूर्वक प्रयोग में लाना चाहिए। मैं हर्षित हूँ कि तुम कृष्णभावनामृत के प्रचार के लिए इतने उत्साहित हो। तो जैसे ही तुम्हें मौका मिले, एक केन्द्र खोलकर, हमारी गतिविधियों का विस्तार करने का प्रयास करो।

आशा है कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षर)

ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी