HI/720803 - गुरुदास एवं यमुना को लिखित पत्र, लंदन

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Letter to Gurudas and Yamuna


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ

केंद्र: इस्कॉन लंदन

3 अगस्त, 1972

मेरे प्रिय गुरुदास व यमुना,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे दिनांक 30 जुलाई, 1972 का तुम्हारा पत्र और साथ ही सच्चिदानन्द एवं अच्युतानन्द के पत्र भी प्राप्त हुए हैं। मैंने इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ा है। परेशान न हो, अब मैं सबकुछ समझ गया हूँ। तुम और तम्हारा पति स्थायी रूप से वृंदावन में रहो। मैंने इने आरोपों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया था। और चूंकि मैंने इनपर विश्वास नहीं किया था, इसीलिए तुमसे पूछा था कि आखिर स्थिति क्या है। अब बात स्पष्ट हो चुकी है, इसलिए परेशान मत होओ।

अब तुम पति पत्नी वृंदावन परियोजना को विकसित करो। बहुत पहले, तुम वृंदावन जाना चाहते थे। तो मैं सोचता हूँ कि वहां पर रहने व चीज़ों का ख़याल रखने के लिए तुम सर्वाधिक उपयुक्त हो। पर ध्यानपूर्वक रहो, यह भारत है। हमें अवश्य ही समय, स्थान व परिस्थितियों के अनुरूप रहना चाहिए। यहि बुद्धिमत्ता है। मोटे तौर पर, भारतीय स्त्रियों की ही भांति, तुम्हें अपने पति के अलावा किसी के भी साथ अंतरंग रूप से घुलना-मिलना नहीं चाहिए।

तो तुम्हें इस बात से परेशान होने की आवश्यकता नहीं है कि क्षीरोदकशायी वहां पर आ रहा है। मैं उससे यहीं पर रहकर लंदंन केन्द्र का विकास करने को कह दूंगा। आज हम मि.जॉर्ज हैरिसन के साथ लंदंन के निकट 75 एकड़ के एक सुन्दर स्थान को देख रहे हैं। मि.हैरिसन ने इस स्थान को ढ़ूंढ़ा है और वे चाहते हैं कि हमारा आश्रम यहां पर हो। वे प्रतिदिन मुझसे मिलने आते हैं और एक बहुत अच्छे नवयुवक हैं। मैं उन्हें बहुत पसन्द करता हूँ। यदि यह स्थान हमें प्राप्त हो जाए, तो मैं लन्दन को अपना स्थायी विश्व मुख्यालय बना दूंगा। वास्तव में मैं प्रशिक्षण के तौर पर ब्रटिश हूँ और दोहरी भारतीय-ब्रिटिश नागरिकता के लिए प्रयास कर रहा हूँ। मुझे अभी भी याद है कि तुम दोनों ने इस लंदन केन्द्र को खोलने में मेरी बहुत अधिक सहायता की थी। और यह पूरे विश्व का सबसे महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। तो मैं हमेशा ही बहुत आभारी हूँ। अब पूरे उत्साह के साथ वृंदावन केन्द्र का विकास करते चले जाओ और किसी क्षणिक असफलता से हतोत्साहित न होओ। किन्तु सर्वदा प्रत्येक वस्तु के लिए कृष्ण पर पूर्णतः निर्भर रहने के मनोभाव में कार्य करो। मैं अक्तूबर तक भारत लौटूंगा।

नगर के अलग-अलग कोनों में अंग्रेज़ी व हिन्दी भाषा में भागवत् सप्ताह के वक्तव्य देने के लिए मैं अगस्त मास में लंदन में ही रहूँगा। फिलहाल के लिए मैंने नैरोबी कार्यक्रम टाल दिया है। तो तुम मुझे यहीं पर उत्तर दे सकते हो।

आशा करता हूँ कि यह तुम दोनों को अच्छए स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकाँक्षी

(हस्ताक्षरित)

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस/एसडीए

गुरुदास एवं यमुना / इस्कॉन वृंदाबन