HI/750507 - ललिता प्रिया को लिखित पत्र, पर्थ

Revision as of 15:15, 8 March 2019 by Harshita (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/1975 - श्रील प्रभुपाद के पत्र Category:HI/श्रील प्रभुपाद के सभी पत्र हि...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Letter to Lalita Priya devi


07 मई, 1975


एडिनबर्ग, स्कॉटलैंड

मेरी प्रिय ललिता प्रिया देवी,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे दिनांक 10 अप्रैल, 1975 का तुम्हारा पत्र मिला और मैंने उसे पढ़ लिया है। मैं यह जानकर प्रसन्न हूँ कि तुम हमारे कृष्णभावनामृत आंदोलन में आनंद कि अनुभूति कर रही हो। हमें भगवान चैतन्य व वृंदावन के षड्गोस्वामियों के पदचिन्हों का अनुसरण करना चाहिए। वे सदैव, विरह की भावना में, कृष्ण की सेवा करते थे। उन्होंने कभी भी नहीं कहा कि “अब मैंने कृष्ण को देख लिया है” या ”कल रात मैंने कृष्ण के साथ नृत्य किया” --- नहीं। वे सदैव क्रंदन करते रहते थे, कि कहां हैं कृष्ण। और यह सोचते हुए, हमेशा उन्हें खोजते रहते थे, कि अन्ततः कब उन्हें कृष्ण के दर्शन होंगे। हमें कृष्ण को देखने व उनके साथ रहने की, सदैव बहुत प्रबल इच्छा करनी चाहिए। किन्तु, पहले हमें भक्तियोग के माध्यम से शुद्ध बनना होगा। इसके अलावा और कोई चारा नहीं है। तो, सभी नियमों का बहुत ध्यानपूर्वक पालन करते हुए, इस कृष्णभावनामृत आंदोलन के प्रचार में मेरी सहायता करती रहो और तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा और तुम्हें कृष्ण के दर्शन होंगे। मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस/पीएस