"अत: जो अध्यात्मिक जीवन बिताते हैं, उनका विनाश नहीं होता। उसका विनाश नहीं होता का अर्थ है कि वह अगले जन्म में भी मानवी जीवन ही धारण करने वाला है। वह अन्य जीवों के जीवन में गुम नहीं हो जाता क्योंकि उसे पुन: वही जीवन प्रारम्भ करना है। कल्पना करो कि उसने कृष्ण भावनामृत में केवल दस प्रतिशत ही जीवन पूरा किया है, और अभी उसे ग्यारहवें प्रतिशत् से जीवन प्रारम्भ करना है। कृष्ण भावना में ग्यारहवा प्रतिशत का जीवन प्रारम्भ करने के लिए उसे मानव देह धारण करनी ही पड़ेगी। अत: यह सुनिश्चित हो गया कि जो इस जन्म में कृष्ण भावनामृत जीवन को अपनाये गा, वह अगले जन्म में मानव देह ही धारण करेगा।"
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