HI/Prabhupada 0195 - शरीर में मजबूत, मन में मजबूत, दृढ़ संकल्प में मजबूत
Lecture on SB 7.6.5 -- Toronto, June 21, 1976
प्रद्युम्न: अनुवाद: "इसलिए, भौतिक अस्तित्व में, भवम अाश्रित: , एक व्यक्ति जो सक्षम है पूरी तरह से सही अौर गलत में भेद करने के लिए, जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, जब तक शरीर बलवान और मजबूत है, और महत्त्व घटने से शर्मिंदा नहीं है । "
प्रभुपाद:
ततो यतेत कुशल: क्षेमाय भवम अाश्रित: शरीरम् पौरुशम् यावन न विपद्येत पुश्कलम ( श्री भ ७।६।५)
तो यह हि मानव गतिविधि होनी चाहिए, कि शरीरम् पौरुशम् यावन न विपद्येत पुश्कलम । जब तक हम बलवान और मजबूत हैं और हम बहुत अच्छी तरह से काम कर सकते हैं स्वास्थ्य काफी ठीक है, इस का लाभ लो । यह नहीं है कि कृष्ण चेतना आंदोलन आलसी आदमी के लिए है । नहीं । यह मजबूत आदमी के लिए है: शरीर में मजबूत, मन में मजबूत, दृढ़ संकल्प में मजबूत, मजबूत सब कुछ में - मस्तिष्क में मजबूत । यह उन लोगों के लिए है । क्योंकि हमें जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य पर अमल करने की जरूरत है । दुर्भाग्य से, उन्हे जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य क्या है यह पता नहीं है । आधुनिक ... आधुनिक नहीं, हमेशा । अब यह बहुत स्पष्ट है: लोगों को जीवन का उद्देश्य क्या है यह पता नहीं है । जो कोई भी इस भौतिक संसार में है, वह माया में है, मतलब है कि उसे जीवन का लक्ष्य क्या है यह पता नहीं है । न ते विदु:, उन्हे पता नहीं है, स्वार्थ-गतिम हि विष्णु । स्वार्थ-गति । हर किसी को अपने स्वार्थ की चिन्ता है । स्वार्थ प्रकृति का पहला कानून है, वे कहते हैं । लेकिन यह स्वार्थ क्या है ये उन्हे पता नहीं है । वे, बजाय वापस घर में वापस जाने के , देवत्व के लिए, - वह उसका असली स्वार्थ है - वह अगले जन्म में कुत्ता बनने जा रह है । क्या यह स्वार्थ है? लेकिन वे यह नहीं जानते हैं । प्रकृति के नियम कैसे काम कर रहे हैं, वे यह नहीं जानते । ना ते विदु: । अदांत गोभिर विशताम् तमिश्रम । मतिर न कृष्णे परत: स्वतो वा । मतिर न कृष्णे परत: स्वतो वा मिथो अभिपद्येत ग्रह-व्रतानाम अदान्त-गोभिर विशताम तमिश्रम् पुन: पुनश् चर्वित-चरवनानाम (श्री भ ७।५।३०)
वह, कृष्ण चेतना ... मतिर न कृष्णे । लोग कृष्ण के प्रति जागरूक बनने के लिए बहुत ज्यादा इच्छुक नहीं हैं । क्यों? मतिर न कृष्णे परत: स्वतो वा । दूसरों की शिक्षा से । जैसे हम दुनिया भर में कृष्ण चेतना का प्रसार करने की कोशिश कर रहे हैं, परत: । स्वतो, स्वतो मतलब है व्यक्तिगत रूप से । व्यक्तिगत प्रयास से । जैसे मैं भगवद गीता या श्रीमद-भागवतम और अन्य वैदिक साहित्य पढ़ रहा हूँ । तो, मतिर न कृष्णे परत: स्वतो वा मिथो वा, मिथो वा का अर्थ है "सम्मेलन से ।" आजकल यह सम्मेलन आयोजित करना एक बहुत लोकप्रिय बात है । तो हम कृष्ण जागरूक नहीं बन सकते हैं यो तो अपने व्यक्तिगत प्रयास से, या कुछ अन्य लोगों की सलाह से, या बड़े, बड़े सम्मेलन अायोजित करके । क्यों? ग्रह-व्रतानाम : क्योंकि उसके जीवन का असली उद्देश्य है कि "मैं इस घर में रहूँगा ।" ग्रह-व्रतानाम । ग्रह का अर्थ है घरेलू जीवन, ग्रह का मतलब है यह शरीर, ग्रह का मतलब है यह ब्रह्मांड । इतने सारे ग्रह हैं बड़े और छोटे ।