HI/710814 - अच्युतानंद को लिखित पत्र, लंदन
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
शिविर: इस्कॉन
7, ब्यूरी प्लेस
लंदन, डब्ल्यू.सी. 1
इंग्लैंड
14 अगस्त 1971
मेरे प्रिय अच्युतानन्द महाराज,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं आपके दिनांक 25 जुलाई, 1971 के पत्र के लिए आपका धन्यवाद करना चाहता हूँ और मैंने उसे पढ़ लिया है। यह बहुत उत्साहवर्धक है कि आप हमारे मायापुर केन्द्र को अच्छी तरह से विकसित कर रहे हैं। बाड़ लगाने कार्य पूरा हो गया है और अब आप किनारी पर उगाए जाने वाले पौधों को रोप रहे हो। यह अच्छी तरह से कीजिए। आपके द्वारा प्रस्तावित कुटिया के चित्र मैंने देखे हैं और यह बहुत आकर्षक है। इसी बीच मैंने आपको दिनांक 7 अगस्त, 1971 को एक पत्र भेजा था, उस लेख के संदर्भ में जो आप भक्तिविनोद ठाकुर के निर्देशों के अनुरूप रथयात्रा पर लिखना चाहते थे। लेकिन मुझे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। मुझे आशा है कि अब तक आप उसे भेज चुके होंगे। यदि नहीं भेजा है तो अब भेज दीजिए, किन्तु उसकी एक प्रति अपने पास भी रखना।
मैं यह जानकर प्रसन्न हूँ कि आप धान की फ़सल काट रहे हैं। यह फ़सल हमारे सदस्यों के उपयोग के लिए बचाई जा सकती है। ईंटों के बारे में, यह बहुत अच्छा विचार है कि आपने 10,000 ईंटों का ऑर्डर दिया है, किन्तु वर्षा ऋतु समाप्त होते ही हम हमारे मन्दिर का निर्माण करेंगे। तो हमें कई लाख ईंटों की आवश्यकता होगी। यदि संभव हो, तो क्यों न उन्हें अभी खरीदकर पानी में भिगोया जाए। यहां लंदन में हम एक बहुत सुन्दर मन्दिर व अहाते की योजना बना रहे हैं और दो या तीन व्यक्ति निर्माण कार्य की देखरेख के लिए जाएंगे। इसी बीच आप आसपास के मिस्त्रियों से ईंटों के बारे में बात कर सकते हैं और मेरे खयाल में आपको और अधिक ईंटों का संचय कर लेना चाहिए। हाँ, हमें श्रील भक्तिसिद्धान्त रोड ने बचा लिया। हम सर्वदा यही अपेक्षा करेंगे कि कृष्णकृपाश्रीमूर्ति श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी महाराज प्रभुपाद मारी रक्षा करें। सदैव उनके चरणों में प्रर्थना करना। भगवान चैतन्य के मिशन के विश्व भर में प्रचार में हमें जो कुछ भी सफलता प्राप्त हुई है, वह केवल उन्हीं की कृपा से है।
मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि आप सभी मुझसे विरह अनुभव कर रहे हैं। और मैं भी ऐसा ही महसूस कर रहा हूँ। जबसे मैंने वह कुटिया देखी है, तब से उसने मुझे तुरन्त वहां जाकर कुछ समय आप लोगों के साथ रहने के लिए आकर्षित कर लिया है। दरअसल हरे कृष्ण का जप करने के लिए कुटिया का जीवन बहुत अच्छा है। किन्तु चूंकि हमारा व्यवहार पाश्चात्य देशवासियों, यूरोपियों व अमरीकियों, से है इसलिए उन्हें कुछ अच्छे कमरों की आवश्यकता है। इसलिए हमें उनके लिए एक बढ़िया मकान बनाना होगा। मेरे गुरु महाराज की नीति थी कि भक्तों को अच्छी सुविधा मुहैया कराई जाए, जिससे वे शान्तिपूर्वक हरे कृष्ण का जप कर सकें और प्रगति करें। लेकिन हम विलासिता में लिप्त नहीं हो सकते हैं। जहां तक संभव हो, हमें अपने जीवन की आवश्यकताओं को कम करना है। परन्तु हम मूलभूत आवश्यकताओं को नहीं दबा सकते।
मुझे तमाल के पत्र से ज्ञात हुआ है कि गुरुदास दिल्ली जा रहा है और कि आप भी दिल्ली जाना चाहते हो। यह अच्छी बात नहीं है। मायापुर में वहां के नेता के रूप में रहिए। और मेरे मतानुसार आपको तबतक मायापुर से नहीं जाना चाहिए, जबतक निर्माण कार्य पूरा नहीं हो जाता। बहुत शीघ्र मैं भारत लौट रहा हूँ। और मैं कुछ समय आपके साथ उस कुटिया में रहूंगा। मेरा ऐसा विचार है। बहरहाल मैं नहीं चाहता कि आप दिल्ली जाएं।
बहुत आनन्द व दिलचस्पी के साथ मैंने आपके- मेरे गुरुदेव की स्तुति में आठ श्लोक- को पढ़ा है। बहुत हीं सुन्दर व विचारपूर्ण शैली है। कृष्ण आपको आशीर्वाद दें कि आप पिछले आचार्यों व भगवान की महिमाओं को लिखनें में उत्तरोत्तर उन्नति करें। परम्परा प्रणाली के गुणगान में रत रहिए और इससे स्वयं आपका जीवन हज़ारों गुना पूजनीय हो जाएगा। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
कृपया वहां आपके साथ रहने वाले सभी युवकों को मेरे आशीर्वाद दीजिए और मुझे आशा है कि आपका स्वास्थ्य ठीक रहता है।
सर्वदा आपका शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एडीबी
अच्युतानंद स्वामी (c / o इस्कॉन)
पी.ओ. श्री मायापुर
जिला। नादिया: पश्चिम बंगाल
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