HI/720219 - उपेंद्र को लिखित पत्र, कलकत्ता

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Letter to Upendra (page 2 of 2)


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी


शिविर: इस्कॉन कलकत्ता

2 फरवरी, 1972


मेरे प्रिय उपेन्द्र,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 2 फरवरी, 1972 का पत्र प्राप्त हुआ है और मैं तुम्हारे सभी प्रश्नों के उत्तर निम्नलिखित प्रकार से दे रहा हूँ- (1) “पञ्जिका” एक कैलण्डर होता है। (2) जहां तक शान्त रस और रूप गोस्वामी एवं श्रीधर स्वामी के संदर्भ में तुम्हारा प्रश्न है, तो मुझे याद नहीं है। तम मुझे उपयुक्त गद्यांश भेज सकते हो। ऐसा नहीं है कि, कुछ बातों पर, आचार्यों के बीच मतभेद नहीं हो सकते।

(3) यदि प्रायः जितनी होतीं हैं उनसे भी अधिक शिकायतें हों तो प्रातः धूप आरती की जा सकती है। किन्तु बेहतर होता है कि पूरा आर्तिक अर्पण किया जाए, पर शान्ति के साथ, जैसे बम्बई में वे मेरे द्वारा धीमें स्वर में किए जा रहे आर्तिक की एक टेप चलाते हैं और पूरा आर्तिक आयोजित करते हैं। हमें हमारी विग्रह पूजा का स्तर घटाने का प्रयास नहीं करना चाहिए, जब वह एक कार्यक्रम बन चुका हो। राधा कृष्ण को पूर्ण आरती के साथ जगाना, जब सब नृत्य कर रहे हों, विशेषतः अच्छा रहता है, लेकिन शान्ति से।

(4) तुम विग्रहों की स्थापना से पहले मेरे पंहुचने की प्रतीक्षा कर सकते हो।

(5) भोग सामग्री के अर्पण में ज़रूरी कदम उठा सकते हो। यदि कोई भी मांस, मछली, अंडे, लहसुन, प्याज़ या और कोई अन्य अति आपत्तिजनक खाद्य सामग्री नहीं है, तो जो कुछ भी उपलब्ध है और बहुत उत्तम है, वह अर्पण करने योग्य है। सलादें ठीक हैं और किस किस्म का चावल होना चाहिए, इसकी कोई शर्त नहीं है। बस, परिस्थिति के अनुसार सर्वोत्तम हो। फ़र्क इससे पड़ता है कि सबकुछ बहुत बढ़िया तरीके से बनाया हो और बहुत अधिक प्रेममय भक्ति के साथ अर्पित किया जाए। इसकी आवश्यकता है।

(6) हाँ, मैं उपानन्द(उपरोक्त) को बता चुका हूँ कि मैं जल्द ही, मार्च के अन्त या उससे पहले, ऑस्ट्रेलिया आऊंगा। तो तुम बहुत शीघ्र ठीक तारीख की अपेक्षा रख सकते हो।

(7) मनोवैज्ञानिक पाखण्डी होते हैं, सारे पाखण्डी। वे सहायता नहीं कर सकते। सबसे अच्छा है निरन्तर जप करना और संकीर्तन सुनते रहना। यह किसी के भी मनोरोग को ठीक कर देगा।

(8) हालांकि तुम्हारे प्रश्नों पर ध्यान देने के लिए, सुदूर पूर्व का कोई जीबीसी नहीं है फिरभी, चूंकि अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ और दर्शनशास्त्र एवं अनुवाद की ओर रुझान रखता हूँ, मैं अपने शिष्यों से आग्रह कर रहा हूँ कि वे कृपया इतने सारे प्राशासनिक कार्य एवं प्रश्नों से मुझे राहत दें। इसी उद्देश्य से मैंने जीबीसी का गठन किया है और तुम वरिष्ठ सदस्य हो और मैं पहले ही तुम्हें सबकुछ दे चुका हूँ। तो तुम यदि प्रश्न हों तो कृपया आपस में सलाह करलो। कहा गया है कि सेवोन्मुखे हि जिह्वादौ, स्वयेंव स्फुरत्यदः अथवा “जिह्वा को जप करने और प्रसाद ग्रहण करने में संलग्न करने से, साथ ही अनुशासनिक नियमों का पालन करने से, भगवान स्वयं को प्रकाशित कर देते हैं।” अन्य शब्दों में कहें तो, यदि तुम निरन्तर निष्कपट रूप से सेवा कर रहे हो और सदैव जप कर रहे हो तो इन सभी प्रश्नों के उत्तर स्वतः प्राप्त हो जाएंगे। मैंने अपने गुरु महाराज से इस एक के अलावा अन्य कोई प्रश्न कभी नहीं पूछा कि ”मैं आपकी सेवा किस प्रकार करूँ?” कृपया इसी प्रकार दूसरों को भी सूचित करो कि मुझे तुमको और बहुत सारी अच्छी पुस्तकें देने की छूट मिले --- यही मेरी वास्तविक इच्छा है।

मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस/एसडीए