HI/720225 - प्रजापति को लिखित पत्र, मायापुर

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Letter to Prajapati


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी


शिविर: इस्कॉन मायापुर (उत्तर: इस्कॉन बॉम्बे)

25 फरवरी, 1972

मेरे प्रिय प्रजापति,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारे द्वारा संकलित “Prayers to Krishna” नामक बहुत अच्छी पुस्तक के साथ तुम्हारा 28 जनवरी, 1972 का पत्र प्राप्त हुआ है। वास्तव में, मैं इस पुस्तक से इतना आनन्दित हूँ और तुमने इसे इतनी निपुणता से बनाया है कि इसमें कोई तब्दीली करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तो आज ही मैंने यह पुस्तक लॉस ऐन्जेलिस में करणधार के पास भेज दी है और उसकी न्यू द्वारिका प्रेस को निर्देश दिए हैं कि वे तुरन्त इस का लेआउट तैयार कर तुम्हारा द्वारा बनाए गए चित्रों कि तरह सुंदर चित्र बनवा लें और परिपूर्ण पांडुलिपि को दाई निप्पॉन के पास 10,000 प्रतियां तुरन्त छपवाने के लिए भेज दें।

मैंने बॉस्टन ”ग्लोब” का समाचार अंश भी बहुत सराहा है और मैं समझता हूँ कि यह तुम्हारे देश का एक सुप्रसिद्ध अख़बार है।

चूंकि तुम्हारी पत्नी एक शास्त्रीय नर्तकी के रूप में पूरी तरह से प्रशिक्षित है और इतने बड़े विश्वविद्यालय में पढ़ा भी चुकी है तो वह कृष्ण एवं उनकी लीलाओं से सम्बन्धित कथाओं पर आधारित शास्त्रीय नृत्यों की व्यवस्था कर सकती है और यह एक बहुत अच्छा प्रस्ताव रहेगा। हाल ही में हमने बम्बई में “Hare Krishna Benefit” नामक एक चैरिटी प्रदर्शन का आयोजन किया था जिसे मनिपुर के एक प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य दल जवेरी सिस्टर्ज़ ने प्रस्तुत किया। तो यह नृत्य कला भी, किसी और कला की ही तरह, परम भगवान के गुणगान की सेवा में लाई जा सकती है। यदि वह एक दक्ष नर्तकी है, तो तुम्हारी पत्नी हमारी कृष्ण पुस्तक से सुन्दर कथाओं के प्रदर्शन हेतु एक नृत्य दल का संचालन कर सकती है।

जहां तक थियोलॉजी में तुम्हारे पर्रशिक्षण की बात है, यदि तुम थियोलॉजी के कुछ प्रसिद्ध पाश्चात्य दृष्टिकोण प्रस्तुत करो और फिर एक-एक करके उन्हें गलत या काल्पनिक सिद्ध कर दो, जो कि अबोध जनसाधारण को पथभ्रष्ट कर रहे हैं, तो वह एक बहुत अच्छी सेवा होगी। चूंकि जब, बुद्धिमान लोग हमारे दर्शनशास्त्र एवं थियोलॉजी को परम सत्य के रूप में समझने लगेंगे और यह जान जाएंगे कि यदि कोई कृष्णभावनाभावित बन जाता है तो वह दर्शनशास्त्र को समझने की चरम पराकाष्ठा होती है, तब हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन बहुत तेज़ी से प्रगति करेगा क्योंकि जनसाधारण सरीखे सब लोग बुद्धिमान विद्वानों के मतों का आदर करते हैं। तो यदि तुम इस प्रकार से बुद्धिमान श्रेणी के व्यक्तित्वों को विश्वास दिलाने का कार्य करोगे, तो यह एक महान सेवा होगी और तुम्हारे विद्यार्जन का भी उपयुक्त प्रयोग होगा। इस प्रकार से मेरी सहायता करने के लिए तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस/एसडीए