HI/720402 - हंसदूत को लिखित पत्र, सिडनी
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ इंक
संस्थापक-आचार्य:कृष्णकृपामूर्ति ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
शिविर: 83 हर्डफोर्ड स्ट्रीट, ग्लीबे, सिडनी, एन.एस.डब्ल्यू., ऑस्ट्रेलिया
2 अप्रैल, 1972
मेरे प्रिय हंसदूत,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। नैरोबी से आगे कर भारत भेजा गया, तुम्हारा दिनांक 17 फरवरी, 1972 का पत्र मुझे मिल गया है। अभी फिलहाल हमने भारत में अपना काम पूरा कर लिया है, तो मैं कुछ समय के लिए यहां ऑस्ट्रेलिया में ठहरा हुआ हूँ, जिसके बाद मैं अपने अनुवाद कार्य के लिए लॉस ऐन्जेलेस लौट जाऊंगा।
मुझे मडली भद्र से यह जानकर बहुत अधिक हर्ष हुआ है कि तुम्हारे द्वारा इतनी सारी बीटीजी जर्मन भाषा में छापी व वितरित की जा रहीं हैं और कि तुमने जर्मनी में बहुत सारे केंद्र खोल दिए हैं। जर्मनी पर काबू पाने के लिए तुम उपयुक्त व्यक्ति हो, तो कृष्ण तुम्हें बल प्रदान करेंगे और मुझे विश्वास है कि तुम सफल होगे। कृष्णभावनामृत की दवा प्राप्त कर चुका, तुम्हारा जर्मन खून, जर्मन जनता के लिए अत्यधिक लाभप्रद रहेगा। तो मैं सोचता हूँ कि तुम युरोप के जर्मन भाषी केंद्रों के संचालक रहो। और स्वीडन एवं सुदूर उत्तरी क्षेत्र के विकास हेतु, कृष्ण दास को स्कैंडिनेवियाई क्षेत्र का संचालक बनाए रखते हैं। अब जर्मनी का सुन्दर, उत्तम विकास करो और पूरे देश को ही भक्त बना दो, यही तुम्हारा काम है। बाकि हम बाद में देखेंगे, लेकिन मैं सोचता हूँ कि अन्य योग्य व्यक्तियों को जीबीसी सदस्य के रूप में भूमध्य, निकट पूर्व व अफ्रिकाई क्षेत्रों के निरीक्षकों के तौर पर नियुक्त कर दूँ, चूंकि इन जगहों में भी विकास की आवश्यकता है। लेकिन जर्मनी में तुम बहुत ही अधिक आवश्यक व महत्तवपूर्ण हो, तो मैं तुम्हारे वहां से अनुपस्थित होने के बारे में नहीं सोच सकता। और फिर वास्तव में जर्मनी ही युरोप का सबसे प्रगतिशील देश है।
दाई निप्पॉन से पुस्तकें छपवाकर उनके वितरण पर ध्यान केन्द्रित करने का तुम्हारा विचार बहुत अच्छा है। तो मैं, हमारे साहित्यों को बेचने की तुम्हारी तकनीकों का पूरा समर्थन करता हूँ। और मुझे इस बात से बहुत राहत मिली है कि यह कार्यक्रम, तुम्हारे नियंत्रण के अंतर्गत, बहुत तेज़ी के साथ अग्रसर हो रहा है। साथ ही, भ्रमण करने वाली संकीर्तन टोली के तुम्हारे विचार भी मुझे बहुत पसंद हैं। यहां ऑस्ट्रेलिया में, इनके पास एक डबल डेककर बस है, जैसी तुमने लंदन की सड़कों पर देखी हैं, और इन्होंने इस पर बहुत चटख रंग किया है। जब ये चलती है तो अंदर कीर्तन मंडली बहुत ज़ोर-ज़ोर से कीर्तन करती है और ऊपरी तल पर सोने को जगह है और रसोईघर भी। कुल मिलाकर यह इतना बढ़िया है कि मैं दयानन्द को सुझा रहा हूँ कि वह तुम्हें व कृष्ण दास को जानकारी दे कि किस प्रकार तुम इन बसों को लंदन में प्राप्त कर, पूर युरोपीय महाद्वीप में चला सकते हो। ये “हरे कृष्ण आंदोलन” बसें हमें पूरे विश्व में प्रसिद्ध कर देंगीं। मैं सिडनी में इनकी ऑस्ट्रेलियाई बस का एक फोटो संलग्न भेज रहा हूँ।
मैंने आभार सहित, तुमसे $250.00 की प्राप्ति स्वीकार कर ली है। अब मुझे तुम्हारी याद आ रही है जब तुम ___ स्ट्रीट में कीर्तन कर रहे थे। वे सभी, बंगाली मूल निवासियों की बड़ी भीड़, वे कितनी सराहना कर रहे थे और तुम्हें पैसे दे रहे थे। वह एक बहुत सुखद याद है। इस प्रकार मेरी सहायता करने के लिए तुम्हारा बहुत धन्यवाद। कृष्ण तुमपर अपनी पूरी कृपा करें।
आशा है कि यह तुम्हें और तुम्हारी धर्मपत्नी, हिमावती, को अच्छे स्वास्थ्य व प्रसन्नता मे प्राप्त होगा।
मेरी सुपुत्री हिमावती के लिए आशीर्वाद सहित।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एसडीए
हंसदूत दास,
c / o इस्कॉन हैम्बर्ग
n.b. मुझे अभी-अभी एक पत्र मिला है जिसमें न्यू यॉर्क में हुई तुम्हारी नौ व्यक्तियों की जीबीसी मीटिंग का वर्णन है और मैंने रुपानुग को यह निम्नलिखित संदेश तार द्वारा भेजा हैः “जीबीसी मीटिंग अवैध है. मेरा कड़ी अस्वीकृति है. कोई तब्दीली मत करो. दूसरों को सूचित करो. इसके बाद पत्र भेज रहा हूँ.” तो तुम देख सकते हो कि मैं बहुत उलझन में हूँ कि तुमने मेरे साथ इस मामले में सलाह किए बिना यह सब क्यों किया है। यदि प्रत्येक बार, जब भी किसी को कुछ महसूस होगा और वह सबकुछ बदलने की मांग उठाने लगेगा, तो जो कुछ भी मैंने किया है वह सब बहुत जल्दी मिट जाएगा। जबतक मैं मामले को भलीभांति जांच नहीं लेता, तबतक फिलहाल तुम्हारे किए अनुसार कोई भी बदलाव लागू नहीं किया जाएगा।
एसीबीएस
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