HI/690331 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 23:20, 8 May 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items)
Nectar Drops from Srila Prabhupada
जिसे हम माया कहते है... मा का अर्थ है "नहीं," और या मतलब "ये" । जिसे आप तथ्य के रूप में स्वीकार कर रहे हैं, वह एक तथ्य नहीं है, इसे माया कहा जाता है । मा-या । माया का अर्थ है "इसे सत्य के रूप में स्वीकार न करें ।" यह केवल अस्थिर चमक है । जैसे की स्वप्न में हम बहुत सी चीजें देखते हैं, और सुबह हम सबकुछ भूल जाते हैं । यह सूक्ष्म स्वप्न है । और यह अस्तित्व, यह शारीरिक अस्तित्व और शारीरिक संबंध - समाज, दोस्ती और प्रेम और इतनी सारी चीजें - वे भी एक स्थूल स्वप्न हैं । यह खत्म हो जाएगा... यह रहेगा... जैसे स्वप्न, कुछ ही मिनटों या कुछ घंटों के लिए ही रहता है, इसी तरह, यह स्थूल स्वप्न भी कुछ साल के लिए ही रहेगा । बस उतना ही । यह भी स्वप्न है । लेकिन वास्तव में हम उस व्यक्ति से चिंतित हैं जो स्वप्न देख रहा है, या जो अभिनय कर रहा है । तो हमें उसे इस स्वप्न से बाहर निकालना है, सूक्ष्म और शारीरिक । यह प्रस्ताव है । तो यह चीज़ बहुत आसानी से कृष्ण भावनामृत की प्रक्रिया से किया जा सकता है, और इसे प्रहलाद महाराज ने समझाया है ।
690331 - प्रवचन श्री.भा. ७.६.९-१७ - सैन फ्रांसिस्को