" 'मेरे प्रिय प्रभु, मैं स्वयं के लिए व्यग्र नहीं हूँ, क्योंकि मेरे पास वह वस्तु है, मुझे कोई समस्या नहीं है कैसे लांघें अज्ञानता को या कैसे वैकुण्ठ जाएँ, या मुक्त हो जाएँ। यह समस्याएं हल हो गयी हैं।' क्यों? कैसे तुमने समाधान किया हैं? त्वद-वीर्य-गायन-महामृत-मग्न-चित्तः:'क्योंकि मैं सदैव आपकी लीलाओं का गुणगान करने में संलग्न हूँ, इस कारण मेरी समस्या हल हो गयी है।' तब तुम्हारी क्या समस्या है? वह समस्या है शोचे: 'मैं विलाप कर रहा हूँ', शोचे ततो विमुख-चेतसः,'जो आपसे विमुख हैं। आपसे विमुख रहते हुए, वे इतना कठिन परिश्रम कर रहे हैं', माया सुखाय, 'तथाकथित सुख के लिए, ये धूर्त। तो मैं इनके लिए बस विलाप कर रहा हूँ'। यह हमारा वैष्णव दर्शन है। जिसने कृष्ण के चरणकमलों का आश्रय ले लिया है, उसको कोई समस्या नहीं है। लेकिन उसकी एकमात्र समस्या है कैसे धूर्तों का उद्धार करें जो सिर्फ कठिन परिश्रम कर रहे हैं, कृष्ण को भूलकर। यही समस्या है।"
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