HI/721111 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"बच्चा जोर दे रहा है: 'पिताजी, मैं यह चाहता हूं'। पिताजी कहते हैं, 'नहीं, तुम इसे मत लो।' 'मैं छूऊँग। मैं आग को छूऊँगा'। पिताजी कहते हैं, 'नहीं, इसे मत छुओ'। लेकिन वह जोर दे रहा है और रो रहा है, इसलिए पिताजी कहते हैं, 'ठीक है, तुम छुओ'। इसी तरह, हम अपना भाग्य और दुर्भाग्य सृजन करते हैं। ये यथा मां प्रपद्यन्ते तामस तथैव भजामि अहम् (भ.गी. ०४.११)। इसलिए पिताजी चाहते हैं कि हम कुछ और करें, लेकिन हम पिताजी की इच्छा के विपरीत कुछ और करना चाहते हैं। इसी तरह, कृष्ण चाहते हैं कि हम में से हर कोई उनको समर्पण करे और उनकी दिशा के अनुसार काम करे, लेकिन हम उसकी इच्छा के खिलाफ करना चाहते हैं। इसलिए हम अपना भाग्य और दुर्भाग्य सृजन करते हैं। वही तरीका है।"
721111 - प्रवचन SB 01.02.32 - वृंदावन