HI/Prabhupada 0076 - सर्वत्र कृष्ण को देखो
Ratha-yatra -- San Francisco, June 27, 1971
जब हमारी आँखें भगवान के प्रेम के साथ आभूषित होती हैं, हम उन्हें हर जगह देख सकते हैं । यही शास्त्रों का उपदेश है । हमें अपनी दृष्टि को विकसित करना पडेगा भगवान के प्रति अपने प्रेम को विकसित करके । प्रेमान्जन छुरित भक्ति विलोचनेन । (ब्रह्मसंहिता ५.३८) जब कोई कृष्ण भावनामृत मैं अच्छी तरह से विकसित हो जाता है, वह भगवान को हर पल अपने ह्रदय और हर जगह देखता है, जहॉ भी वह जाता है ।
तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन एक कोशिश है लोगों को सीखाने के लिए कि भगवान को कैसे देखा जा सकता है, कृष्ण को कैसे देखा जा सकता है । कृष्ण को देखा जा सकता है, अगर हम अभ्यास करें तो । जैसे कृष्ण कहते हैं, रसो अहम् अप्सु कौन्तेय (भ गी ७.८) । कृष्ण कहते हैं "मैं जल का स्वाद हूँ ।" हम में से हर कोई, हम रोज़ जल पीते हैं, केवल एक बार, दो बार, तीन बार नहीं, या उससे भी ज़्यादा । तो जैसे ही हम जल पीते हैं, अगर हम सोचें की इस जल का स्वाद कृष्ण हैं, तुरंत हम कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं ।
कृष्ण भावनाभावित बनना इतना कठिन नहीं है । हमे केवल अभ्यास करना पडेगा । यह एक उदाहरण है कि कैसे हम कृष्ण भावनामृत बनने का प्रयास कर सकते हैं । जब तुम जल पीते हो, जैसे ही तुम संतुष्ट हो जाते हो, तुम्हारी प्यास बुझ जाती है, तुम तुरंत सोचो कि यह प्यास को बुझाने वाली शक्ति कृष्ण है । प्रभास्मि शशि सूर्ययो: (भ गी ७.८), कृष्ण कहते हैं, "मैं सूर्य का प्रकाश हूँ । मैं चन्द्रमा का प्रकाश हूँ ।" तो दिन में, हम सब सूर्य का प्रकाश देखते हैं । जैसे ही तुम सूर्य का प्रकाश देखो, तुरन्त तुम कृष्ण को याद कर सकते हो, "कृष्ण यहाँ हैं ।"
जैसे ही तुम रात में चन्द्रमा के प्रकाश को देखते हो, तुरन्त तुम याद कर सकते हो "कृष्ण यहाँ हैं ।" इस तरह से, अगर तुम अभ्यास करो, कई उदाहरण हैं, भगवद्-गीता में कई उदाहरण दिए गए हैं, सातवे अध्याय में, अगर तुम उन्हे ध्यान से पढ़ोगे, कैसे कृष्ण भावनामृत का अभ्यास करना चाहिए । तो उस समय पर, जब तुम परिपक्व हो जाते हो कृष्ण प्रेम में, तुम हर जगह कृष्ण को देखोगे । कृष्ण को देखने के लिए तुम्हे किसी की मदद की ज़रूरत नही पढ़ेगी, लेकिन कृष्ण तुम्हारे समक्ष प्रकट होंगे, तुम्हारी भक्ति से, तुम्हारे प्रेम से ।
सेवोँमुखे ही जिह्वादौ स्वयं एव स्फुरती अद: (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.२३४) । कृष्ण, जब कोई सेवा भाव मे होता है, जब कोई समझता है कि "मैं कृष्ण का शाश्वत सेवक हूँ या भगवान का," तब कृष्ण तुम्हारी सहायता करेंगे कि कैसे उन्हे देखा जा सकता है । यह भगवद्-गीता मे कहा गया है,
- तेषां सततयुक्तानां
- भजतां प्रीतिपूर्वकम्
- ददामि बुद्धियोगं तं
- येन मामुपयान्ति ते
- (भ गी १०।१०) ।