HI/Prabhupada 0144 - इसे माया कहा जाता है
Sri Isopanisad, Mantra 2-4 -- Los Angeles, May 6, 1970
- प्रकृते: क्रियमाणानी
- गुनै कर्माणि सर्वश:
- अहंकार विमूढात्मा
- कर्ताहम इति मन्यते
- (भ गी ३.२७) भक्तों का, कृष्ण खुद चार्ज लेते हैं और साधारण व्यक्तियों के लिए, चार्ज माया लेती है। माया भी कृष्ण की एजेंट है। जैसे अच्छे नागरिक की तरह, उनका सीधे सरकार द्वारा ध्यान रखा जाता है, और अपराधियों, उनका जेल विभाग के माध्यम से सरकार द्वारा ध्यान रखा जाता है, आपराधिक विभाग के माध्यम से। उनका भी ध्यान रखा जाता है। कारागार में सरकार ध्यान रखती है कि क़ैदी असुविधामें नहीं हैं - उन्हे पर्याप्त भोजन मिलता है, वे रोगग्रस्त हो तो अस्पताल में इलाज होता है। पूरी देखभाल होती है लेकिन सजा के तहत। इसी तरह, हम इस भौतिक दुनिया में, निश्चित रूप से ध्यान तो है, लेिकन एक सजा के तहत। यदि तुम ऐसा करते हो, तो थप्पड़। यदि तुम ऐसा करते हो, तो लात। यदि तुम ऐसा करते हो, तो यह ... यह चल रहा है। यह त्रिताप दुख कहा जाता है। लेकिन माया के प्रभाव के तहत हम सोचते हैं कि माया की यह लात मारना, माया का यह थप्पड़, माया का यह ताड़ना बहुत अच्छा है। तुम देख रहे हो? इसे माया कहा जाता है।
और जैसे ही तुम कृष्ण भावनामृत में अाते हो, तो कृष्ण तुम को सम्भाल लेते हैं। अहम् त्वाम् सर्व पापेभ्यो मोक्षयिश्यामि मा शुच: (भ गी १८.६६) | कृष्ण, जैसे ही तुम आत्मसमर्पण करते हो, श्री कृष्ण का तत्काल शब्द है, "मैं तुम्हारा ध्यान रखूँगा।" मैं सभी पापी प्रतिक्रिया से तुम्हे बचाऊँगा । " हमारे जीवन में पापी प्रतिक्रिया का ढेर है, इतने सारे जीवन के लिए इस भौतिक संसार में रहकर। और जैसे ही तुम श्री कृष्ण के प्रति समर्पण करते हो, तुरंत श्री कृष्ण तुम्हारा ख्याल रखते हैं। और वह सब पापी प्रतिक्रियाओं को ठीक करने में सफल होते हैं। अहम् त्वाम् सर्व पापेभ्यो मा शुच: । कृष्ण कहते हैं, "संकोच न करो।" तुम सोचते हो कि "अरे, मैं इतने सारे पापी गतिविधियों के लिए प्रतिबद्ध हूँ। कैसे कृष्ण मुझे बचा लेगें?" नहीं। कृष्ण सर्वशक्तिमान हैं। वह तुम्हें बचा सकते हैं। तुम्हारा काम है आत्मसमर्पण करना, अौर किसी भी आरक्षण के बिना, उनकी सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करना, और इस प्रकार तुम बच जाअोगे।