HI/Prabhupada 0300 - मूल व्यक्ति मरा नहीं है

Revision as of 18:29, 17 September 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture -- Seattle, October 2, 1968

प्रभुपाद: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।

भक्त: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।

प्रभुपाद: तो हमारा कार्यक्रम है पूर्ण पुरुषोत्तम भगवन, गोविन्द, की पूजा करना । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है, यह पता लगाना कि कौन मूल व्यक्ति हैं । स्वाभाविक रूप से, हर कोई परिवार के मूल व्यक्ति, समाज के मूल व्यक्ति ला पता लगाने के लिए उत्सुक है, राष्ट्र का मूल व्यक्ति, मानवता का मूल व्यक्ति ... तुम खोज करते जाअो । लेकिन अगर तुम उस मूल व्यक्ति का पता लगा सकते हो जिस से सब कुछ अाया है, वह ब्रह्म है । जन्मादि अस्य तय: (श्रीमद भागवतम १.१.१) | वेदान्त सूत्र कहता है, ब्रह्म, निरपेक्ष सत्य, वह है जिस से सब कुछ उत्पन्न होता है । बहुत सरल वर्णन ।

भगवान क्या हैं, निरपेक्ष सत्य क्या है , बहुत सरल परिभाषा - मूल व्यक्ति । तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन का मतलब है मूल व्यक्ति के समीप जाना । मूल व्यक्ति मरा नहीं है, क्योंकि सब कुछ मूल व्यक्ति से उत्पन्न होता है, तो सब कुछ बहुत अच्छी तरह से काम कर रहा है । सूरज उग रहा है, मौसम बदलते हैं, चाँद उदय होता है, तो ... रात है, दिन है, बस क्रम में । तो मूल व्यक्ति का शरीर अच्छी तरह से चल रहा है । कैसे तुम कह सकते हो कि भगवान मर चुके है? जैसे तुम्हारे शरीर में, जब चिकित्सक पता लगाता है कि तुम्हारी दिल की धड़कन अच्छी तरह से चल रही है तुम्हारी नब्स देख कर, वह घोषित नहीं करता है, कि "यह आदमी मर चुका है ।" वह कहता है,"हाँ, वह जिंदा है ।"

इसी प्रकार, अगर तुम बुद्धिमान हो, तुम विश्व शरीर की नब्ज को महसूस कर सकते हो - और यह अच्छी तरह से चल रहा है । तो तुम कैसे कह सकते हो कि भगवान मर चुके है ? भगवान कभी मरते नहीं है । यह बदमाश का संस्करण है कि भगवान मर चुके है - मूर्ख व्यक्ति, जो व्यक्ति यह जानता नहीं है कि जिंदा या मुर्दा कैसे महसूस किया जाता है । जिसे यह बात समझ में अाती है कि मृत या जीवित कैसे महसूस किया जाता है, वह कभी नहीं कहेगा कि भगवान मर गए है । इसलिए भगवद गीता में यह कहा गया है कि: जन्म कर्म मे दिव्यम यो जानाति तत्वत: (भ.गी. ४.९) "कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति जो बस यह समझ सकता है, कैसे मैं अपना जन्म लेता हूँ और मैं कैसे काम करता हूँ, "जन्म कर्म ... और इस शब्द पर ध्यान दो, कर्म - काम, अौर जन्म - जन्म । वे नहीं कहते हैं जन्म मृत्यु । मृत्यु का मतलब है मौत । जो कुछ भी जन्म लेता है, उसकी मौत भी होती है । कुछ भी हो । हमे कोई भी एसा अनुभव नहीं है कि जो जन्म लेता हो पर मरता नहीं है ।

यह शरीर जन्म लेता है, इसलिए यह मर जाएगा । मृत्यु पैदा होती है मेरे शरीर के जन्म के साथ । मैं अपनी उम्र बढ़ रहा हूँ, वर्षों की संख्या, मतलब है, मैं मर रहा हूँ । लेकिन भगवद गीता के इस श्लोक में, श्री कृष्ण कहते हैं जन्म कर्म, लेकिन कभी नहीं कहते हैं, "मेरी मृत्यु ।" मृत्यु नहीं हो सकती है । भगवान अनन्त है । तुम भी, तुम भी मरते नहीं हो । मैं यह नहीं जानता । मैं बस अपना शरीर बदलता हूँ । तो यह समझ में आना चाहिए । कृष्ण भावनामृत विज्ञान एक महान विज्ञान है । यह कहा गया है ... यह नई बात नहीं है, भगवद गीता में कहा गया है । तुम में से अधिकांश, तुम अच्छी तरह से भगवद गीता के साथ परिचित हो । भगवद गीता में, यह स्वीकार नहीं करता है कि इस शरीर की मृत्यु के बाद मृत्यु नहीं - यह शरीर के विनाश, जन्म या मृत्यु के बाद, तुम या मैं मरते नहीं है । न हन्यते (भ.गी. २.२०)। न हन्यते का मतलब है, " "कभी नहीं मरता" या " कभी नष्ट नहीं होता," यहां तक ​​कि इस शरीर के विनाश के बाद भी । यह स्थिति है ।