HI/Prabhupada 0379 - दशावतार स्तोत्र भाग १
Purport to Dasavatara Stotra, CD 8
प्रलय-पयोधि-जले धृतवान असि वेदम | यह महान वैष्णव कवि, जयदेव गोस्वामी द्वारा गाया एक गीत है । तात्पर्य यह है जब प्रलय हुअा, पूरा ब्रह्मांड पानी से भर गया । इस भौतिक दुनिया का अंतिम विघटन, सब से पहले होगा, पानी नहीं होगा, पृथ्वी पर सब पानी सूरज की झुलसती गर्मी से सूख जाएगा । सूरज अबसे बारह बार मजबूत हो जाएगा इस वर्तमान क्षण से ।
उस तरह, सभी पानी उड जाएगा, समुद्र और महासागर सब सूख जाएँगे । इसलिए पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणी मर जाऍगे, और फिर, भीषण गर्मी के कारण, व्यावहारिक रूप से सब कुछ राख में तब्दील हो जाएगा । फिर एक सौ साल के लिए बारिश होगी, तेज़ बारिश, हाथी के सूंढ़ की तरह, और इस तरह पूरा ब्रह्मांड पानी से भर जाएगा । इसे प्रलय-पयोधि कहा जाता है । तबाही के समय, प्रलय, पूरा ब्रह्मांड हो जाएगा ... जैसे यह अब हवा से भरा है, उस समय पर यह पानी से भर जाएगा । तो उस समय वेदों का बचाव होगा भगवान द्वार एक नाव में, और नाव महान मछली के पंखों में फंस जाएगी । वह महान मछली कृष्ण का अवतार है । इसलिए वे पूजा कर रहे हैं, केशव धृत मीन शरीर जय जगदीश ।
तो मीन-शरीर । अगला है क्षितिर इह विपुलतरे तिष्ठति तव पृश्ठे धरणि धारण किण चक्रे गरिष्ठे । तो वहाँ मंथन होगा, अगला अवतार कछुआ है । कछुए की पीठ पर मेरु-पर्वत तय हो जाएगा, या दुनिया कछुआ की पीठ पर धारण होगी । यह दूसरा अवतार है । पहला मछली, और फिर कछुआ । फिर वराह-अवतार । एक दानव, हिरण्य, हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष । तो वह, अपने राक्षसी गतिविधियों से धरती को फेंक देंगा गर्भो सागर में | इस ब्रह्मांड के भीतर एक समुद्र है । विश्व का आधा भाग गर्भोसमुद्र से भरा है, जिस पर गर्भोदकशायी विष्णु हैं, अौर उनमें से एक कमल की डंडी बाहर आती है, जहॉ से ब्रह्मा जन्म लेते हैं ।
तो सभी ग्रह लटक रहे हैं विभिन्न डंडीओ के रूप में इस मूल डंडी पर, गर्भोदकशायी विष्णु के उदर से बाहर आते हुए । तो हिरण्याक्ष नाम का एक राक्षस, वह इस पानी के भीतर इस धरती को डाल देगा, और उस समय, भगवान वराह के अवतार में आएँगे । वराह अवतार ब्रह्मा की नाक से एक छोटे से कीट के रूप में आए, अौर जब उन्होंने अपने हाथ पर उसे रखा, वे बढ़ने लगे । इस तरह से उन्होंने एक बहुत विशाल शरीर ग्रहण किया, और उनके दांत के साथ, उन्होंने गर्भो समुद्र के पानी के भीतर से पृथ्वी को उठाया ।
यही केशव-धृत-वराह-रूप कहा जाता है । अगला है तव कर कमल वरे नख अद्भुत श्रंगम दलिय-हिरण्यकशिपु-तनु-भृगम् । हिरण्यकशिपु, वो एक और राक्षस था, जो अमर होना चाहता था । तो उसने ब्रह्मा से आशीर्वाद लिया कि वह भूमि पर नहीं मरेगा, आकाश में या पानी में नहीं । इसलिए, इसको सत्य करने के लिए, ब्रह्मा द्वारा दिए गए आशीर्वाद के कारण... भगवान कृष्ण अपने भक्त के शब्दों का सम्मान देने की कोशिश करते हैं । इसलिए ब्रह्मा ने उसे आशीर्वाद दिया "हाँ, तुम आकाश में, पानी पर, जमीन पर नहीं मरोगे ।" लेकिन नरसिंह-देव आधे सिंह, आधे आदमी, के रूप में अवतरित हुए, क्योंकि हिरण्यकशिपु नें ब्रह्मा से आशीर्वाद लिया कि वह किसी भी आदमी या किसी भी जानवर से नहीं मारा जाएगा । तो उन्होंने रूप लिया उसका जिसे तुम एक आदमी या जानवर नहीं कह सकते हो, और उन्होंने अपनी गोद में दानव को डाला, जो न तो भूमि, जल या आकाश है । और वह चाहता था कि किसी भी हथियार से ना मारा जाए ।
इसलिए भगवान नें उसे मारा अपने नाखून के साथ । नाखून को हथियार के रूप में नहीं माना जाता है । इस तरह, वह ब्रह्मा को धोखा देना चाहता था, लेकिन भगवान इतने बुद्धिमान हैं कि उन्होंने हिरण्यकशिपु को धोखा दिया, और उसे मार डाला । केशव धृत नरहरि रूप । दलिय-हिरण्यकशिपु-तनु-भृगम् । जैसे हमारे नाखून की तरह, हम किसी भी कीट को मार सकते हैं । एक चींटी को लो, तुम उसके दो भाग कर सकते हो । इसी तरह, हिरण्यकशिपु वह एक विशाल राक्षस था, उसकी एक छोटे से कीट से तुलना की गई, और प्रभु के नाखूनों द्वारा मारा गया था ।