HI/Prabhupada 0385 - गौरंगा बोलिते होबे तात्पर्य

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Purport to Gauranga Bolite Habe -- Los Angeles, December 29, 1968

यह गीत नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा गाया गया था, एक महान भक्त आचार्य गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के परम्परा उत्तराधिकार में । गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय का मतलब है भगवान चैतन्य से आ रहे हैं जो परम्परा उत्तराधिकार में । तो इस नरोत्तम दास ठाकुर नें कई गीत लिखे हैं, और इन सब को वैष्णवों द्वारा मान्यता प्राप्त है एक अधिकार के रूप में । उन्होंने साधारण बंगाली भाषा में गाने गाए हैं, लेकिन गीत का अभीप्राय और गहरा अर्थ बहुत महत्वपूर्ण है । वे कहते हैं: गौरंगा बोलिते होबे पुलक-शरीर यह जप की पूर्णता है कि जैसे ही हम मंत्र जपते हैं, या प्रभु गौरंगा का नाम लेते हैं, जिन्होंने संकीर्तन आंदोलन प्रारंभ किया, तुरन्त शरीर में कंपन होगी । तो इसकी नकल नहीं करनी चाहिए । लेकिन नरोत्तम दास ठाकुर सलाह दे रहे हैं कि जब वह उपयुक्त समय अाएगा हमारे जीवन में, कि जैसे ही हम प्रभु गौरंग का नाम जपे, शरीर में कंपन होगी । और, कंपन के बाद, हरि हरि बोलिते नयने बबे नीर, हरे कृष्ण का जाप करने से आंखों में आंसू होंगे। अौर फिर वे कहते हैं, आर कबे निताइचंद कोरुणा करिबे । हम सब भगवान नित्यानंद की दया के बारे में पूछ रहे हैं । नित्यानंद मूल आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं । इसलिए हमें प्रभु नित्यानंद की दया के माध्यम से, गौरंग या भगवान चैतन्य का अाश्रय लेना होगा। तो भगवान नित्यानंद की अकारण दया हासिल किए हुए व्यक्ति के लक्षण क्या हैं? नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं कि जो वास्तव में नित्यानंद की अकारण दया प्राप्त करता है, उसकी कोई भौतिक इच्छा नहीं रहती है । यही लक्षण है । आरे कबे निताइचंद कोरुणा करिबे संसारे वासना मोर कबे तुच्छ । संसार-वासना का मतलब है भौतिक अानंद की इच्छा, जब यह बहुत तुच्छ हो जाती है । बेशक, जब तक हमारा शरीर है हमें बहुत सारी बातें स्वीकार करनी पडती है, भौतिक । लेकिन आनंद की भावना से नहीं, लेकिन केवल शरीर और आत्मा को बनाए रखने के लिए । तो ... और वे आगे कहते हैं: रूप-रघुनाथ-पदे हौबे अाकुटि । कब मैं छह गोस्वामियों द्वारा लिखी गई पुस्तकों का अध्ययन करने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक हो जाऊँगा । अाकुटि का मतलब है उत्सुकता । एक ... क्योंकि रूप गोस्वामी इस भक्ति सेवा के पिता हैं । उन्होंने वह किताब लिखी है, भक्ति-रसामृत-सिंधु । उस किताब में अच्छा निर्देश है । बेशक, चैतन्य-चरितामृत, और अन्य पुस्तकों में ... हमने अपनी पुस्तक, 'भगवान चैतन्य की शिक्षाओं' में उन निर्देशों का सारांश दिया है । तो हमें राधा कृष्ण की माधुर्य प्रेम के मामलों को जानना चाहिए, इन छह गोस्वामियों की शिक्षाओं के माध्यम से । नरोत्तम दास ठाकुर हमें दिशा देते हैं कि तुम समझने की कोशिश मत करो अपने खुद के प्रयास से राधा कृष्ण के माधुर्य प्रेम को । तुम्हे गोस्वामियों के निर्देश से समझने की कोशिश करनी चाहिए। तो नरोत्तम दास ठाकुर गाते हैं ... (विराम) ... नरोत्तम । रूप-रघुनाथ-पदे हौबे अाकुटि कबे हाम बुझब श्री युगल प्रीति । युगल प्रीति का मतलब है माधुर्य प्रेम । और दूसरा वे गाते हैं कि विशय छाडिया कबे शुद्ध हबे मन । यह मन, इतन, इतना, जब तक मन भौतिक सोच में अवशोषित है, वह वृन्दावन के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता है । नरोत्तम दास ठाकुर का कहना है: विशय छाडिया कबे शुद्ध हबे मन । कब मेरा मन पूरी तरह से शुद्ध हो जाएगा, भौतिक चिंताओं और इच्छाओं से मुक्त, तब मैं समझने में सक्षम हो जाऊँगा कि क्या है वृ्न्दावन क्या है राधा और कृष्ण का माधुर्य प्रेम और फिर मेरा आध्यात्मिक जीवन सफल हो जाएगा ।