HI/Prabhupada 0399 - श्री नाम, गाये गौर मधुर स्वरे तात्पर्य
Purport to Bhajahu Re Mana -- The Cooperation of Our Mind
गाये गौरनंद मघु स्वरे । यह भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा गाया गया एक गीत है । वे कहते हैं कि भगवान चैतन्य, गौर, गौरा का मतलब है भगवान चैतन्य, गौरसुन्दर, गोर रंग । गाये गौरनंद मघु स्वरे । मीठी आवाज में वे महा मंत्र गा रहे हैं, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे ।
बहुत प्यारी अावाज़ में वे गा रहे हैं, और यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनका अनुसरण करें महा मंत्र गाने में । तो भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, , गृहे थाको, वने थाको, सदा हरि बोले थाको । गृहे थाको का मतलब है कि या तो तुम एक गृहस्थ के रूप में अपने घर में रहो, या तुम जंगल में रहो सन्यासी के रूप में , कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन तुम महा मंत्र का जाप करना ही होगा, हरे कृष्ण । गृहे, वने थाको, सदा हरि बोले थाको । हमेशा इस महा मंत्र का जाप करो । सुखे दुक्खे भुलो नाको । "संकट में या खुशी में जप करना मत भूलना ।" वदने हरि-नाम कोरो रे । जहॉ तक जप का ( सवाल है), कोई भी रोक टोक नहीं है, क्योंकि मैं किसी भी हालत में रहूँ, मैं लगातार इस महा मंत्र का जप कर सकता हूँ, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हर ।
तो भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, " कोई बात नहीं, कि तुम संकट या खुशी में हो, तुम लगातार इस महा मंत्र का जप करो ।" माया-जाले बद्ध होए अाछो मिछे काज लोये । तुम भ्रामक ऊर्जा के जाल में फँस गए हो । माया-जाले बद्ध होए, जैसे मछुआरे पकडता है, समुद्र से, सभी प्रकार के जीवों को अपने जाल में । इसी तरह हम भी भ्रामक ऊर्जा के जाल में हैं, और क्योंकि हमारी कोई स्वतंत्रता नहीं है, इसलिए हमारी सभी गतिविधियों बेकार हैं । स्वतंत्रता में कर्म का कुछ अर्थ है, लेकिन जब हम स्वतंत्र हैं ही नहीं, माया के चंगुल में, माया के जाल में, फिर हमारी तथाकथित आजादी का कोई मूल्य नहीं है । इसलिए, हम जो भी कर रहे हैं, यह बस हार है । हमारी संवैधानिक स्थिति को जाने बिना, यदि तुम्हे कुछ करने के लिए मजबूर किया जाता है, भ्रामक ऊर्जा के दबाव से, यह बस समय की बर्बादी है । इसलिए भक्ितविनोद ठाकुर कहते हैं, "अब आप मनुष्य जीवन में तुम्हें पूर्ण चेतना मिली है । तो सिर्फ हरे कृष्ण का जप करो, राधा माधव, ये सभी नाम । कोई नुकसान नहीं है, लेकिन महान लाभ है ।" जीवन हौयलो शेष, ना भजिले ऋषिकेश । अब धीरे - धीरे सब लोग मौत के कगार पर हैं, कोई नहीं कह सकता है कि "मैं रहूँ्गा, मैं अौर सौ साल के लिए जीवित रहूँगा ।" नहीं, हम किसी भी क्षण मर सकते हैं । इसलिए, वे सलाह देते हैं जीवन हौयलो शेष : हमारा जीवन का किसी भी क्षण अंत हो सकता है, और हम ऋषिकेष कृष्ण की सेवा नहीं कर सके । भक्तिविनोदोपदेशे । इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, एकबार नाम-रसे मातो रे : "कृपया मुग्ध हो जाअो, नाम रसे, दिव्य नाम के जप के मधुर में । इस समुद्र के भीतर तुम गोता लगाअो । यही मेरा अनुरोध है ।"