HI/731103 बातचीत - श्रील प्रभुपाद दिल्ली में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 23:05, 20 October 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो कोई इस स्व-धर्म को त्याग देता है, त्यक्त्वा स्वधर्मं, और कृष्ण भावनामृत को स्वीकार करता है, कृष्ण को समर्पण करता है, लेकिन किसी तरह या अन्य-संघ द्वारा, माया की चाल से - फिर से उसका पतन हो जाता है, जैसे हमारे कई छात्र चले गए हैं... कई नहीं, कुछ ही। तो भागवतम् कहता है, यत्र क्व वाभद्रमभूदमुष्य किं कि, "इसमें गलत क्या है?" भले ही वह आधे रास्ते पतित हो, फिर भी कुछ गलत नहीं है। उसने कुछ हासिल किया है। जो सेवा वह पहले से कृष्ण को दे चुका है, वह दर्ज है। वह दर्ज है।"
731103 - बातचीत - दिल्ली