HI/610415 - श्रीमानों को लिखित पत्र, दिल्ली
अप्रैल १५, १९६१
प्रिय श्रीमान,
मैं आपको सूचित करना चाहता हूँ कि मुझे मानव चेतना के विकास हेतु अंतराष्ट्रीय सम्मलेन के जापानी संयोजकों द्वारा निमंत्रित किया गया है, जो आपके विभिन्न महत्वपूर्ण नगरों में आयोजित की जाएगी। मैं मानव समाज के आध्यात्मिक उन्नयन हेतु समर्पित एक भारतीय वैष्णव सन्यासी हूँ। इसलिए मैंने आपके देश में आगामी सम्मलेन का पक्ष उठाया है और जब मैं जापान में हूँ (तब) आपसे सुविधानुसार मिलने का इच्छुक हूँ।
भारतीय मनीषियों के मत में, भौतिक सभ्यता की वर्तमान प्रगति, गलत राह में जा रही है क्योंकि उसने मानव स्वभाव के आध्यात्मिक पहलू की अवहेलना की है। सभी प्राणी भौतिक ढांचे से ढके हुए आध्यात्मिक स्फुलिंग हैं। उसके शुद्ध आध्यात्मिक रूप में प्राणी चिन्मय, सर्वज्ञ और आनंदमय है, किन्तु भौतिक विषय से आवृत होने के कारण वह भौतिक अस्तित्व की तिहरी आपदाएं भोग रहा है।
मानव रूप का जीवन क्रमिक विकास की सबसे उन्नत अवस्था है और इसलिए आध्यात्मिक संस्कृति पर आधारित सभ्यता सही प्रकार की मानव सभ्यता है।
मनुष्य को अवश्य जानना चाहिए वह क्या है, वह कहाँ से आया है, मृत्यु के पश्चात (उसकी) क्या गति है; हम जीवन की तिहरी आपदाएं क्यों भोग रहे हैं; जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है; यह लौकिक ब्रह्माण्ड क्या है; भौतिक पदार्थ क्या है और आध्यात्मिक क्या है; इनमे से कौन उत्तम है आदि। कितनी सारी बातें मनुष्य को सीखनी हैं।
दुर्भाग्यवश, वर्तमान मानव समाज ने भौतिक विज्ञान की प्रगति के द्वारा मारने और नष्ट करने के लिए घातक अस्त्र-शस्त्र निर्माण कर लिए हैं। उनके पास शांतिमय और प्रगतिशील जीवन निर्माण के लिए कोई अविष्कार नहीं है। विश्व के पास जीवन की महत समस्याओं के बारे में जानकारी नहीं है।
मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ कि आपके कुछ अच्छे देशवासियों ने इस दोषयुक्त सभ्यता पर ध्यान दिया है और बहुत समयानुकूल इस महत्वपूर्ण सम्मलेन को संयुक्त राष्ट्र संघ की भांति एक अंतराष्ट्रीय संस्था बनाने के भावी अभिप्राय हेतु आमंत्रित किया है।
इसे जानकर मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ और मैं आपसे मिलने के लिए और इस महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ प्रयास में अपना पूर्ण सहयोग देने के लिए बहुत उत्सुक हूँ। मुझे आशा है कि यह श्रेष्ठ आंदोलन साम्यवादियों और पूंजीवादियों को सामान रूप से जीवन के सामान्य लक्ष्य के लिए एकजुट कर देगा जो कि बुद्धिमान श्रेणी के मनुष्यों की पर्याप्त संख्या की कमी के होते अभी तक आवृत्त रहा था।
इसलिए मैं इच्छा करता हूँ कि इस सम्मेलन में सभी राष्ट्रों की सर्वाधिक बुद्धिमान शख्सियतों का एक समूह एकसाथ मिलेगा और आध्यात्मिक ज्ञान से अनभिज्ञ सामान्य जनसमूह को शिक्षा देगा कि,
(१) मानव जीवन आध्यात्मिकता पर आधारित है
(२) आत्मा भौतिक पदार्थ से अलग श्रेष्ठ तत्व है और
(३) मानव समाज को आध्यात्मिक संस्कारों के जीवन द्वारा ही पूर्णता में प्रवृत्त किया जा सकता है।
जीवन की यह पूर्णता मृत्यु के पश्चात् आगामी क्रमिक जीवन विकास की रचना में भी सहायक होगी। मानव समाज किसी श्रेणीगत या राष्ट्रीय या कट्टर धार्मिक बाधा के बिना मानव समाज की सामान्य पूर्णता हेतु इस आंदोलन के साथ उदारतापूर्वक सहयोग के लिए है। आध्यात्मिक संस्कृति धार्मिक कट्टरता नहीं है बल्कि यह दर्शन, विवेक और संस्कृति पर आधारित है। यह बड़ी आसानी से संगीत, नृत्य और जलपान के सुविधाजनक माध्यम से प्रस्तुत की जा सकती है जो विश्व के सभी हिस्सों में हर दर्जे के मनुष्यों द्वारा स्वीकृत हैं। इसे सभी राष्ट्रों के बुद्धिमान मनुष्यों के संयुक्त प्रयास से केवल संगठित करने की आवश्यकता है। मैंने मानव संस्कृति सार-संग्रह को पचास चित्रलिखित व्याख्या से स्पष्ट करने का प्रयास किया है और मेरी इच्छा है की ये चित्रलिखित व्याख्याएं विस्तृत रूप से वितरित करी जाएँ। इस सम्मेलन के प्रायोजकों ने इसकी जिम्मेदारी ली है और मैं आशा करता हूँ कि वे आवश्यक कार्यवाही करेंगे।
आध्यात्मिक संस्कृति के बिना मानव समाज पशुओं का एक अन्य प्रकार है। पशु जगत में शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है जैसे सर्कस में प्रशिक्षित सिंह का कभी भरोसा नहीं करा जा सकता। सिंह का भरोसा नहीं करते क्योंकि वह आध्यात्मिक ज्ञान आत्मसात नहीं कर सकता। किन्तु एक मनुष्य इस ज्ञान को ग्रहण कर सकता है ओर उसके मस्तिष्क की रचना इसी के लिए है। यह कुछ असाधारण नहीं है क्योंकि वह इस संस्कृति (को ग्रहण करने के लिए) के लिए तैयार है और उपयुक्त व्यवस्था की प्रतीक्षा कर रहा है। इसके उपायों और साधनों की परिकल्पना जीवन्मुक्तों द्वारा और विशेषतः भारत के मनिषिओं द्वारा हुई थी और मुझे गर्व है कि महात्मा बुद्ध एक भारतीय हुए और हम भगवान के अवतार की तरह उनकी पूजा करते हैं। उनका पवित्र नाम भागवत जैसे वैदिक शास्त्र में कथित है। हम वैदिक शास्त्र के सार और परिपक़्व फल भागवत से सहायता ले सकते हैं और तुरंत वर्तमान संसार के कलह और उत्पात को रोक सकते हैं।
मुझे आशा है आप मान्यवर अपने महान राष्ट्र के अन्य विचारवान मनुष्यों समेत इस आंदोलन को सम्पूर्ण ध्यान देंगे और मैं इस अभियान में अपनी विनम्र सेवा अर्पित करने के लिए सदा आपके साथ हूँ। आशा है कि आप सकुशल होंगे और अधिक जब हम मिलेंगे।
भगवत सेवारत आपका
ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी
विशेष टिप्पणी: ऐसा एक पत्र हवाई डाक द्वारा भी भेजा गया है
श्री तेरुता कुनीटो
ताकामात्सु सिटी के नगराध्यक्ष
ताकामात्सु सिटी, शिकोकू द्वीप जापान
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