HI/581100 - भाई को लिखित पत्र, झाँसी

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भाई को पत्र (पृष्ठ १ से ४)
भाई को पत्र (पृष्ठ २ से ४)(प्रारंभ में पाठ अनुपस्थित)
भाई को पत्र (पृष्ठ ३ से ४)(प्रारंभ में पाठ अनुपस्थित)
भाई को पत्र (पृष्ठ ४ से ४)(प्रारंभ में पाठ अनुपस्थित)


अज्ञात तिथि

मेरे प्रिय भाई,

कृपया मुझे क्षमा करें यदि मैंने आपको मेरे प्रिय भाई कह कर गुस्ताखी की है। वास्तव में आप मेरे प्रिय भाई हैं और जब आप मुझे जान जायेंगे तब आपके हर्ष की सीमा नही होगी।

हमारे शाश्वत पिता सर्वशक्तिमान भगवन श्री कृष्ण, जिन्होंने महान दर्शनशास्त्र भगवद् गीता के ज्ञान को दिया था, ऐसे परम पिता के संबंध में आप मेरे भाई हैं। और इस पारलौकिक ज्ञान की पुस्तक से मैंने जाना है कि आप और अन्य सभी जीवित प्राणी, चाहे वे किसी भी रूप में हों, मेरे भाई हैं।

लेकिन मैं कुछ अन्य कम बुद्धिमान भाइयों को जानता हूं, जो की अब पशु साम्राज्य में हैं, और वे मुझे पहचान नहीं पाएंगे, भले ही मैं उन्हें अपने प्यारे भाइयों के रूप में संबोधित करूं, क्योंकि वे सब बहुत बुरी तरीके से भौतिक चेतना से ढके हुए हैं। चूंकि आप एक इंसान हैं और आपकी चेतना विकसित है, मैंने सीधे आपको "मेरे प्यारे भाई" से संबोधित करने का साहस उठाया है। इसलिए कृपया करके मेरे इस प्रयास को किसी गलत दृष्टिकोण से न देखें।

ऐसा हो सकता है, हालांकि मैं इसे नहीं मानता, की आप उन अन्य भाइयों में से एक हैं, जो हमारे शाश्वत पिता परमेश्वर जैसे किसी व्यक्ति के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते हैं। लेकिन अगर आप ऐसा मानते हैं, तो मैं आपको बता दूँ कि आप गलत हैं। आपके इस अभिशंसा का कारण या तो दूसरे बहके हुए भाईयों का बेहकावा है, या फिर आप हमारे शाश्वत पिता से संपर्क करने मे असफल रहें हैं। अतः, यदि आप उन पर विश्वास नही करते हैं, तो आप सही चेतना में नही हैं।

मैं आपको हर तरीके से समझाने के लिए तैयार हूं कि, हमारे शाश्वत पिता हैं और वे चाहते हैं कि आप और हम सब अपने स्थायी घर को वापस चले जाएं। यदि आप यह तर्क देते हैं कि ऐसा कोई भी परमपिता परमेश्वर नहीं है, तो मैं अभी भी पूरी गंभीरता के साथ आपसे वितर्क करने के लिए तैयार हूँ। ऐसे में आप कृपया कर के मुझे अपने निश्चित दृष्टिकोण का प्रासंग दें ताकि मैं उन सभी विचारों का एक-एक करके उत्तर देने का प्रयास कर सकूं। और अगर आप मुझसे बहस करने की इच्छा रखतें हैं, तो मेरा आपसे केवल यही अनुरोध है कि इस तरह के तर्कों के लिए हमें हमेशा बहुत ईमानदार और गंभीर होना चाहिए। एक बार जब हम इस तरह से आश्वस्त हो जाते हैं, फिर हमें उसी के अनुसार कार्य करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

आप यह भी तर्क दे सकते हैं कि अगर कोई भगवान है, तो उन्हें शांति से उनके लोक पर या किसी भी जगह पर रहने दो, हमें उनसे कोई लेना देना नहीं है। उस मामले में मैं फिर से कहूंगा कि उनसे अपना भुलाया हुआ रिश्ता स्थापित करने की हर एक वजह आपके पास है।

मान लीजिए कि आप एक अमीर आदमी के बेटे हैं और आपने अपने घर को छोड़ दिया है, अपने पिता की संपत्ति, घर और खुशी को भूल गए हैं। और अगर कोई व्यक्ति आपको अपने आलीशान पैतृक संपत्ति के अमित मूल्य के बारे में जानकारी देता है, जो आप अपने जन्मसिद्ध दावे से प्राप्त कर सकते हैं, तो क्या आप उस दोस्त की उपेक्षा करेंगे? मुझे यकीन है कि आप ऐसा नहीं करेंगे। मैं आपको ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी देने में सक्षम हूं।

मैं आपको चुनौती दे सकता हूं कि आप अपने वर्तमान के स्थिति मे खुश नहीं हैं। आपके पास तथाकथित संचित भौतिक धन, अच्छा स्वास्थ्य अन्य सभी वस्तुएँ हो सकती हैं लेकिन फिर भी आप हमेशा कुछ कमी और निराशा महसूस करते रहते हैं और कोई भी वस्तु आपको सोची गयी मात्रा में खुशी नही दे पाती है। यदि आप ऐसा महसूस नहीं करते हैं, तो फिर आप एक असामान्य व्यक्ति हैं या फिर एक मुक्त संत हैं या फिर अंततः , लघु चेतना से भ्रमित अज्ञान में हैं। अगर आपको असामान्य रूप से खुशी महसूस होती है, तो मैं आपसे निम्नलिखित कुछ सादे प्रश्न पूछूंगा। वे इस प्रकार हैं:-

१) क्या आप मरना पसंद करते हैं?

२) क्या आप अपना जन्म दोबारा लेना पसंद करेंगे ?

३) क्या आपको बूढ़ा होना पसंद है?

४) क्या आप एक रोगग्रस्त आदमी बनना पसंद करेंगे ?

मुझे यकीन है कि आप इन सभी सवालों का जवाब एकमात्र शब्द "नहीं" में देंगे। अगर आप खुद को खुश मानते हैं तो क्या आपने उपरोक्त सभी समस्याओं को किसी भी तरह से हल किया है? क्या आपके भौतिक ज्ञान के विशाल संसाधनों ने इन सामान्य प्रतीत होने वाली अति गंभीर संशयओं का समाधान निकाला है? क्या आपको लगता है कि आप कभी भी उपरोक्त समस्याओं को कितने भी समय में हल कर पाएंगे? यदि आप फिर से सहमति नही जताते हैं, तो फिर मैं आपको एक असामान्य स्थिति के अंतर्गत ही देख पाऊँगा।

इसलिए कृपया इस कृत्रिम धारणा के शिकार में आकर पागल न बने। अपनी समस्याओं के अज्ञानता में मत रहें। एक जागरूक आदमी की तरह बनें और स्वीकार करें कि आप कभी भी यथार्थ रूप से खुश नहीं हो पाएं हैं और आपको खुशी की वांछित मात्रा कभी भी नही मिल पाई है।

जिस तरह से आप खुश रहना चाहते हैं या अपनी निर्मित विचारधारा के अंतर्गत - दूसरों को खुश करना चाहतें है - उसे "माया" या भ्रम कहा जाता है। खुद को और दूसरों को खुश करने के इस भ्रामक तरीके से, आपको केवल सभी संबंधितों के लिए बहुत सारी गड़बड़ी और उलझाव पैदा करने का श्रेय दिया गया है। यह भौतिक दुनिया के इतिहास का रिकॉर्ड है। साम्राज्य आता है और साम्राज्य चला जाता है, परंतु जीवन की समस्याएं वैसी की वैसी रहती हैं। इसलिए कृपया करके, एक शांत मस्तिष्क और धैर्य से अपने भीतर चिंतन करें कि क्या आप वास्तव में खुश हैं।

जिस खुशी के पीछे आप भाग रहें हैं, उसे आत्मनिरीक्षण से प्राप्त किया जा सकता है। आप खुद के दोस्त और खुद ही के दुश्मन हैं। आप अपने आत्म प्रयास से खुद को ऊपर उठा सकते हैं और उसी प्रयास से आप खुद का पतन कर सकते हैं। बस दिशा और रास्ता जानना है। सही दिशा में आप सही तरीके से खुद को खुश कर सकते हैं। इसलिए कृपया हमें संपर्क करें और हम आपको आपकी यथार्थ खुशी तक पहुँचाने में मदद करेंगे। यह कोई सपना नहीं है और न ही कोई झांसा। आपको खुद पता चल जायेगा कि आपने उस रास्ते में कितनी दूर तक प्रगति की है और हमारा कर्तव्य केवल आपकी मदद करना होगा। यह सोचकर कि आप हमारे भक्तों के समूह के एक भावी सदस्य बनेंगे, मैं आपको प्रॉस्पेक्टस की एक प्रति भेज रहा हूं और मैं ईमानदारी से चाहता हूं कि आप इस महान संस्था के सक्रिय सदस्य बनें। भुगतान या भुगतान के बिना आप बिना किसी दाइत्व के एक सदस्य बन सकते हैं और समूह आपको हमेशा दिव्य पुत्र के रूप में स्वीकार करेगा ।

सादर,

भक्तों के समूह के लिए,

अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत,

अध्यक्ष