HI/670803 - मुरारी को लिखित पत्र, वृंदावन

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मुरारी को पत्र


३ अगस्त १९६७

मेरे प्रिय मुरारी दास,
मैं तो आपका पत्र दिनांक ७-१९-६७ देख खुश हूं। कीर्त्तनानन्द और मैं दोनों १४ जुलाई, आधी रात को, सुरक्षित पहुंच गए, सीमाशुल्क आदि से गुजरने के बाद हमने करीब सुबह ३:०० बजे दिल्ली में अपने मंदिर में शरण ली। फिर भी हम पूरी रात सो नहीं पाए। उसके कारण, मैं निष्प्रयोज्य हो गया, और तीन या चार अतिरिक्त दिनों के लिए वहां रहने के लिए बाध्य था। मैं अब ३१ को वृंदावन आया हूं, और राधा दामोदर मंदिर में रह रहा हूं। आपने मुरारी दास के अर्थ के बारे में पूछा है: मुरारी कृष्ण का एक और नाम है; इसलिए जो कृष्ण का सेवक बनने का वचन देता है, उसे मुरारी दास कहा जाता है। मुझे बहुत खुशी है कि आप कृष्ण के लिए संगीत बजा रहे हैं। यह आपकी प्रतिभा की बड़ी सेवा है। किसी की भी विशेष प्रतिभा प्रभु की सेवा में लगी होनी चाहिए, और इस प्रकार वह अपने जीवन में सफल हो पायेगा। मेरे ख्याल से आप गिटार बजाना जारी रख सकते हैं, और इसे कृष्ण कीर्तन में सफल कर सकते हैं। आपको नए सिरे से सितार सीखने की आवश्यकता नहीं है। हमारा मतलब प्रभु की सेवा में कुछ नया सीखना नहीं है; लेकिन हमें जो भी प्रतिभाएं पहले ही मिल चुकी हैं, उन्हें सेवा मेँ संलग्न करना होगा। हमारा जीवन काल छोटा है, लेकिन किसी भी प्रकार की शिक्षा महान और लंबी है; इसलिए वीरता का सबसे अच्छा हिस्सा प्रभु की सेवा के लिए हमें जो भी योग्यताएं मिली हैं, उनका ठीक से उपयोग करना है। यदि आपको अभी भी लगता है कि आप एक सितार चाहते हैं, तो मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि मेसर्स द्वारकिन एंड संस, एस्प्लेनेड कलकत्ता के साथ पत्राचार करें।
कृपया मेरा आशीर्वाद लीलावती तक पहुंचाएं, जो प्रभु की सेवा में बहुत अधिक ईमानदार हैं। हरे कृष्णा!
आपका नित्य शुभचिंतक,

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी