HI/670829 - हयग्रीव को लिखित पत्र, वृंदावन

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हयग्रीव को पत्र


मेरे प्रिय हयग्रीव,                                     २९ अगस्त १९६७
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मुझे भारत में आपका पहला पत्र प्राप्त करते हुए बहुत खुशी हो रहा है। जहाँ तक गीता का संबंध है, कृपया इसे यथाशीघ्र पूरा करवाएं; यह अब प्रकाशित किया जाना चाहिए, या तो प्रकाशक द्वारा या अपने आप से। मेरे कमरें में एक झोला है, जिसमें सभी पुराने पांडुलिपियां हैं, और इसके अलावा मेरे कमरें में है (कुंजी ब्रह्मानंद के साथ है) एक कपड़े का पोटली जिसमें आपको प्रतिलिपि मिलेंगी; और मुझे लगता है कि रायराम के साथ कुछ प्रतिलिपि भी हैं। कृपया वहां अनुपस्थित श्लोक खोजे, और यदि नहीं, मैं इसे फिर से करूँगा।
अलगाव के बारे में, आप जानते हैं कि मैं भी महसूस कर रहा हूं [अस्पष्ट] ____ यह सब कृष्ण कि युक्ति है कि हम अलग नहीं हो सकते [अस्पष्ट] ___ दिव्य क्षेत्र, विरह की भावना अधिक है [अस्पष्ट] मिलने की भावना। शारीरिक रूप से मैं जितनी जल्दी हो सके आपके राज्यों में वापस जाने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे आपके देश से लगाव हो गया है, और उससे प्रेरणा पाकर, मैं पहली बार आपके देश गया, और अभी भी वही भावना है। मैं सुधार कर रहा हूं, हालांकि धीरे से; लेकिन मैं खाना और सोना न्यू यॉर्क की तुलना में बेहतर कर रहा हूं। आपकी अटकलों के बारे में की आपको किसी पद को स्वीकार करना चाहिए या नहीं: कृष्ण चाहते हैं कि हर किसीको, जहां तक संभव हो, अपनी प्रतिभा का उपयोग करना चाहिए। अर्जुन एक महान योद्धा थे, और कृष्ण ने उन्हें लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अर्जुन से कभी नहीं कहा कि उन्हें बैठ जाना चाहिए, और वे उसके लिए ऐसा करेंगे, यद्यपि वह ऐसा करने में सक्षम थे। सिद्धांत यह होना चाहिए कि हम प्रभु की सेवा के लिए अपनी प्रतिभा का सदुपयोग करें। यही असली संन्यास है। सन्यास की औपचारिक स्वीकृति, सभी वृद्धजनों के लिए आवश्यक, का अर्थ है कि उनको भौतिकवादी जीवन से निवृत्त होना चाहिए, और प्रभु की सेवा के लिए अपना समय और ऊर्जा समर्पित करनी चाहिए। जैसे आप पहले से ही प्रभु की सेवा के लिए समर्पित हैं, बिना किसी व्यक्तिगत विचार के, आप हमेशा दिल से संन्यास हैं। अब अगर आप कृष्ण भावनामृत के उद्देश्य के लिए कुछ धन प्राप्त कर सकते हैं, मुझे लगता है कि यह एक महान सेवा होगी। इसके अलावा जहां तक कीर्तन का सवाल है तो किसी भी परिस्थिति में इसे रोकने की कोई संभावना नहीं है। जहां भी आप सेवा स्वीकार करते हैं, आप एक केंद्र को बहुत अच्छी तरह से व्यवस्थित कर सकते हैं। एक शिक्षक का पद हमेशा प्रभावशाली होता है; आपके कीर्तन का जो ईमानदार प्रयास है उसे आपके कुछ छात्र और कर्मचारी द्वारा अनुसरण किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि आपकी ईमानदार सेवा, शिक्षित लोगों के बीच अधिक लाभकारी ढंग से उपयोग किया जाएगा। साथ-साथ आपका अच्छा संपादकीय काम भी जारी रहेगा, तो मुझे लगता है कि आप उस पद को स्वीकार कर सकते हैं।
मुझे यह जानकर बहुत खुशी हो रही है कि आपने अपनी लंबी दाढ़ी और बालों का त्याग कर दिया है। मैं आपकी मां का पता भूल गया हूं, वर्ना मैं उन्हें आपके कार्य के बारे में सूचित कर देता, और मुझे लगता है कि उन्हें यह बहुत अच्छा लगता। वैसे भी, आपने इस "माया" का त्याग करके अपनी उम्र काफी कम कर दी होगी, और अब आप एक बहुत अच्छे युवा सज्जन की तरह दीखते होंगे। मुझे अच्युतानंद का एक पत्र मिला है जिसमे उन्होंने लिखा है कि वह पहली तारीक को यहां आ रहे हैं। मैं कीर्त्तनानन्द को दिल्ली उनकी अगवानी के लिए भेजूंगा। मेरा भी ५ तारीख को दिल्ली जाने का कार्यक्रम है; इसलिए अच्युतानंद के आने के बाद, यदि वह वृंदावन में कुछ दिनों के लिए रहना पसंद करता है, तो मैं स्वामी बॉन (जिन्होंने, जैसा कि आप जानते हैं, किसी भी इच्छुक छात्र को मुफ्त कमरे और भोजन और शिक्षण, की पेशकश की है) के साथ व्यवस्था करूंगा, या वह समायोजित कर सकता है [अस्पष्ट]_ हम तीन भारत में कुछ यात्रा करेंगे [अस्पष्ट]_ संस्था के लिए। चूंकि हमारी अच्छी व्यवस्था है ओरिएंटल फिलॉसोपी इंस्टिट्यूट के साथ, मुझे लगता है कि हम फिलहाल अंतराष्ट्रीय देशों में केंद्र नहीं खोलेंगे। मैं भी बंबई जा रहा हूं ताकि प्रबंध निदेशक को सिंधिया लाइन पर हमें कुछ रियायत देने के लिए प्रेरित कर सकूं। मैं एक बार और दोहराता हूं कि मैं भी आपके अलगाव को महसूस कर रहा हूं, और मैं जितनी जल्दी हो सके लौटने की कोशिश कर रहा हूं।
आपका नित्य शुभचिंतक,

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी