HI/750102 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो वैदिक आदेश यह है कि हम इतने सारे जीवों के प्रति बाध्य हैं, और हमें उन्हें संतुष्ट करना है। जैसे आप सरकार के प्रति, इतनी सारी सुविधाएं देने के लिए बाध्य हैं, और आपको केवल अपने दायित्व को पूरा करने के लिए कर का भुगतान करना होता है । यदि आप कर नहीं देते हैं, तो आप अपराधी हैं। इसी तरह, हमें इंद्र, चंद्र से बहुत सारे लाभ मिलते हैं। हमें इंद्र से बारिश, चंद्र या चंद्र-देवता से चांदनी, और सूर्य-भगवान से धूप मिलती है । ये आवश्यक चीजें हैं, गर्मी और प्रकाश। तो हम बाध्य हैं, निश्चित रूप से। लेकिन अगर आप कृष्ण की शरण लेते हैं, तो आप सभी दायित्वों से मुक्त हैं। कृष्ण कहते हैं, अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि ([वैनिसोर्स :बीजी १८.६६
बीजी १८.६६) यदि आप कर का भुगतान नहीं करते हैं, तो आप दंडित होने के लिए उत्तरदायी हैं। वह है पापा।"|Vanisource:750102 - Lecture SB 03.26.25 - Bombay]]