HI/Prabhupada 0767 - ततः रूचि । फिर स्वाद । आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल जाएगा
Lecture on SB 6.1.39 -- Los Angeles, June 5, 1976
प्रभुपाद: आप एक क्षण में भगवद् प्रेम को पैदा नहीं कर सकते । यदि आप निष्कपट हो और भगवान आपसे अत्यंत प्रसन्न हैं, तब आप कर सकते हो। वे आपको दे सकते हैं। वे आपको तुरंत दे सकते हैं। यह संभव है। लेकिन ऐसा कुछ दुर्लभ स्थितियों में ही हो सकता है। आमतौर पर, यह प्रक्रिया है: आदौ श्रद्धा तत: साधु-संगो। जैसे की अब आप इस मंदिर में आए हैं। आपके पास कुछ न कुछ आस्था है, हम सभी के पास है। उसे श्रद्धा कहते हैं, आदौ श्रद्धा। इस परिसर में कई लाखों लोग रहते हैं। वे क्यों नहीं आ रहे हैं? यही शुरुआत है। आपको कुछ विश्वास है, श्रद्धा है। तो आप आए हो। आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो । और यदि आप यहा आना जारी रखते हैं ... तो हम क्या कर रहे हैं? हम इन वैदिक ग्रंथों से शिक्षाएँ लेने के लिए संघ ले रहे हैं। इसे साधु-संघ कहा जाता है। दारु की दुकान में हम एक तरह का संघ करते हैं, हॉटेल में एक तरह का संघ करतेे हैं । क्लबों में हम किसी और तरह का संघ करते हैं, इस प्रकार विभिन्न स्थान हैं। तो इस जगह पर भी एक प्रकार का संघ है। यह साधु-संघ कहा जाता है। भक्तों का संघ।तो आप आए हो। आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो (चैतन्य चरित्रामृत मध्य 23.14-15)। और अगर कोई परिपक्व है, तो वह भक्ति सेवा करना चाहता है, भजन क्रिया। और जैसे ही भजन-क्रिया की शुरूआत होगी, तब अनावश्यक बकवास बातें गायब हो जाएगीं। न कोई अवैध स्त्री संघ, न कोई नशा, और न ही शराब पीना, न कोई जुआ। सब बंद। अनर्थ-नीवृतीः स्यात, तब सभी गलत आदतें चली जाती हैं, फिर निस्था, दृढ़ विश्वास, थोड़ा भी न बहकना। ततो निस्था ततः रूचि। तो फिर स्वाद। फिर आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा। स्वाद बदल जाएगा। ततो निस्था ततः रुचिस्, तथाशक्तिस्, तो आकर्षण होगा। तब भाव। भाव का मतलब परमानंद : " ओह, श्री कृष्ण" फिर प्रेम है। विभिन्न चरण होते हैं। तो यह ... असली धर्म प्रेम होता है, कैसे भगवान से प्रेम करें। यही असली धर्म है।
धर्म ... वह क्या है? यतो भक्तिर् ... सा वै पुंमसाम् परो धर्मो (भागवताम् 1.2.6)। धर्म के विभिन्न प्रकार होते हैं। लेकिन असली धर्म वह है जो हमें भगवान से प्रेम करना सीखाए। बस इतना ही। इससे अधिक कुछ नहीं। कोई कर्मकांड समारोह, कोई सूत्र, कुछ नहीं। अगर आपका ह्रदय हमेशा भगवान के लिए रो रहा है, तो वही सबसे श्रेष्ठ धर्म है। यही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। इसलिए चैतन्य महाप्रभु का कहना है , शुन्यायितम् जगत सर्वम : "ओह, श्री कृष्ण के बिना, मुझे सारी दुनिया अर्थहीन लग रही है।" अर्थहीन, हाँ। तो हमे उस स्थिति पर आना है। बेशक, यह हम सभी के लिए संभव नहीं है, लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने हमें दिखाया है कि कैसे सर्वोच्च धार्मिक व्यक्ति बने । हमेशा महसूस करना, "ओह, श्री कृष्ण के बिना, सब कुछ अर्थहीन है।" शुन्यायितम् जगत सर्वम गोविंदा विरहेन्। यही असली धर्म है, यही असली धर्म है। तो विष्णुदूत, इन यमदूतों का परीक्षण कर रहें हैं, धर्म का अर्थ क्या है, वह समझते हैं या नहीं। धर्म, हम खुद से नहीं बना सकते। धर्म न तो हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म, ये धर्म, वो धर्म नहीं है। कुछ सांप्रदायिक समझ हो सकती है, लेकिन असली धर्म का मतलब है कि भगवान से प्रेम करना कैसे सीखा जाए ।
बहुत बहुत धन्यवाद।
भक्त: जय प्रभुपाद।