HI/690508 - उपेंद्र को लिखित पत्र, कोलंबस
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
संस्थापक आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
318 पूर्व 20 वीं एवेन्यू
कोलंबस, ओहियो 43201
8 मई, 1969,
मेरे प्रिय उपेन्द्र,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे दिनांक 4 मई, 1969 का तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ और इसे पढ़कर मुझे बहुत उत्साह मिला है। मैं सोचता हूँ कि गिरिजाघर के बारें में तुम्हें हर प्रकार से प्रयास करना चाहिए। और यदि आव्श्यकता हो तो, जिस राशि की तुम्हें आवश्यकता है, वह तुम्हें उधार दे दी जाएगी। मैं तमाल कृष्ण को बता भी चुका हूँ कि, इस ऋण की व्यवस्था करने का जिम्मा, लॉस ऐन्जेलेस मन्दिर को दिया जा सकता है। तो इसके लिए प्रयास करो, चूंकि ऐसा सुन्दर गिरिजाघर, सिएटल में हमारी प्रचार गतिविधियों के लिए एक वरदान सिद्ध होगा।
तुमने मन व आत्मा के अन्तर के संदर्भ में प्रश्न किया है। तो मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि मन इन्द्रियों मे से एक है और आत्मा, मन समेत, समस्त इन्द्रियों का स्वामी। जैसे यह शरीर भौतिक है, वैसे ही मन भी भौतिक है। जैसे-जैसे हम अपने आध्यात्मिक शरीर की पुनर्स्थापना करते हैं और भौतिक आवरण हटते जाते हैं, वैसे ही हम अपने आध्यात्मिक मन को भी पुनर्जीवित कर लेते हैं। वर्तमान स्थिति में, मेरा भौतिक मन, बुद्धि व अहंकार मुझे विविध प्रकार के शरीरों में ले जा रहा है। चूंकि मन की नाना प्रकार की इच्छाएं होतीं हैं, और वह आत्मा को उसी प्रकार ले चलता है, जैसे कि हवा किसी फूल की सुगंध अथवा किसी अन्य गन्ध को बहा ले चलती है। अर्थात, मन एक उपकरण है और आत्मा उस उपकरण का संचालक।
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य व प्रसन्नचित्त अवस्था में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षर)
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
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