HI/760206 - रामेश्वर को लिखित पत्र, मायापुर
6 फरवरी, 1976
लॉस एंजेलेस
मेरे प्रिय रामेश्वर दास,
कृपया मेरे आशी4वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 27 जनवरी, 1976 का पत्र मिला है और मैंने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है। जहाँ तक उपदेशामृत का प्रश्न है, उसे जन साधारण में क्यों वितरित नहीं किया जाए? सभी पुस्तकें सभी के लिए हैं, लेकिन विशेषकर भक्तों के लिए। कृपया इसे बड़ी संख्या में छापने का प्रयास करो ताकि इसका वितरण भी श्री ईशोपनिषद् भांति हो पाए।
जहांतक “कृष्ण भावनामृत प्रामाणिक है” की बात है, तो इस बारे में सबसे पहले तुम्हें कुछ हज़ार प्रतियां भारत भिजवाने का प्रबन्ध करना चाहिए। उन्हें कलकत्ता मन्दिर, मेरे नाम पर भेजा जा सकता है। मैं अपनी सीधी देखरेख में एक पुस्तक वितरण विभाग संघटित कर रहा हूँ और मैं इन पुस्तकों को अधिकारियों, प्राध्यापकों, वकीलों इत्यादि को भेजुंगा। मैं सोचता हूँ कि इस पुस्तक की सामूहिक डाक बी बी टी मेल ऑर्डर विभाग द्वारा की जा सकती हैं और सारा खर्च बी बी टी उठा सकता है। पर क्योंकि हम इसका अधिकतर वितरण निःशुल्क करेंगे, तुम्हें यथासंभव कम से कम खर्च करने का प्रयास करना चाहिए। तुम अपनी डाक द्वारा अच्छी प्रतिक्रिया प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हो, पर प्रतिक्रिया चाहे जैसी भी हो हमें इस पुस्तक का अंधाधुंध वितरण मेरे सुझाए चुनिन्दा लोगों को करना है, जैसे प्रसिद्ध व्यापारियों, डॉक्टरों, सरकारी अफ़सरों, वैज्ञानिकों आदि। तुम्हारी नई सदस्यता प्रकाशन, ”कृष्ण भावनामृत प्रामाणिक है” के किसी भी सामूहिक डाक में सम्मिलित होनी चाहिए।
बम्बई के लिए जो राशि है, उसे तुम प्रत्येक माह के पहले सप्ताह तक मुझे भेज सकते हो। गोपाल कृष्ण से पूछने की कोई आवश्यकता नहीं है। कृपया, राशि के प्रत्येक ट्रान्सफर के उपरान्त, ट्रान्सफर स्लिप की एक फोटोकॉपी मुझे भेजना।
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छी स्थिति में मिले,
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी
(हस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/डीडीए
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