"पहली बात है कि मान लिजिए कोई मेरे बारे में बहुत कठोरता से बोलता है। स्वाभाविक रूप से हम नाराज़ हो जाते हैं। ठीक जैसे कोई मुझे पुकारे, "तुम श्वान हो": या "तुम शूकर हो"। किन्तु यदि मैं आत्मसाक्षातकार सिद्ध हूँ, यदि मैं भली प्रकार जानता हूँ कि मैं यह शरीर नहीं हूँ, तो आप मुझे शूकर बोलें, श्वान या राजा, सम्राट, महामहिम, वह क्या है? मैं यह शरीर नहीं हूँ। तो चाहे आप मुझे "महामहिम" बोलें या आप मुझे श्वान या शूकर बोलें, मुझे इससे क्या लेना है? मैं न तो महामहिम हूँ न ही एक श्वान न ही एक शूकर - इस किस्म का कुछ भी नहीं। मैं कृष्ण का सेवक हूँ।"
|