HI/Prabhupada 0825 - मानव जीवन का एकमात्र प्रयास होना चाहिए कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों की अाश्रय लें

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741102 - Lecture SB 03.25.02 - Bombay

यह वेदों में कहा गया है,

नित्यो नित्यानाम् चेतनश चेतनानाम
एको बहुनाम् यो विदधाति कामान
( कथा उपनिषद २।२।१३)

भगवान का वह एश्वर्य क्या है? यह है: एको बहुनाम् यो विदधाति कामान । भगवान, एक, और नित्यो नित्यानाम और नित्यानाम, बहुवचन । तो ये जीव, हम बहुवचन संख्या में हैं । जीव भाग: स विज्ञेय: स चानन्त्याय कल्पते । कितने जीव हैं, कोई सीमा नहीं है। कोई भी गिन नहीं सकता है । अनंत । अनंत मतलब तुम सीमा नहीं पता कर सकते हो, "इतने लाख या हजार " नहीं। तुम गिन नहीं सकते। तो ये सभी जीव, हम, जीव, हम उस एक द्वारा पोषित हैं । यह वैदिक जानकारी है। एको यो बहुनाम् यो विदधाति कामान । जैसे हम अपने परिवार को पोष्ण करते हैं । एक आदमी कमा रहा है, और वह अपने परिवार, पत्नी, बच्चों, नौकरों, आश्रितों, श्रमिकों को पोषित कर रहा है, इतने सारे । इसी तरह, वह एक, भगवान, सभी जीवों को पोषित कर रहा है । तुम पता नहीं है कि कितने हैं । अफ्रीका में लाखों हाथि हैं। वे भी एक समय में चालीस किलो खा रहे हैं। तो वे भी पोषित हैं । और छोटी चींटी, वह भी पोषित है । ८४००००० के विभिन्न शरीर के रूप हैं। कौन पोषित कर रहा है उन्हें ? पोषित, भगवान, वह एक: । एको बहुनाम यो विदधाति कामान । यह एक तथ्य है । तो क्यों वह हमें पोषित नहीं करेगा ? खास तौर पर जो भक्त हैं, जिन्होंने भगवान की चरण कमलों में शरण ली है। सब कुछ छोडक़र केवल उनकी सेवा के लिए । जैसे हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन में । हमारे एक सौ केंद्र से अधिक हैं । और एक केंद्र ... हम अभी नव भरत टाइम्स का बयान पढ़ रहे थे कि वे किस तरह से सुप्रबंधित हैं । लेकिन हमारे कोई व्यापार नहीं है। हमारी आय का कोई स्रोत नहीं है। आय का एकमात्र स्रोत यह है-श्री कृष्ण की शरण । समाश्रिता ये पाद पल्लव प्लवम । इसलिए शास्त्र कहते हैं कि "तुम श्री कृष्ण की शरण लो ।" श्री कृष्ण भी अाते हैं वही सच्चाई कहने के लिए । सर्व-धर्मन परित्ज्य माम एकम शरणम व्रज (भ गी १८।६६) उन्होंने नहीं कहा कि, "तुम ऐसा करो अौ वैसा करो । फिर मैं तुम्हे पोषित करूँग ।" नहीं । अहम् त्वाम सर्व पापेभ्यो : "न ही पोषित करूँगा लेकिन तुम्हारी रक्षा करूँगा पापी जीवन की प्रतिक्रियाअों से ।" इतना आश्वासन है। इसलिए शास्त्र भी कहते हैं, तस्यैव हेतो: प्रयतेत कोविदो न लभ्यते यद भ्रमताम उपरि अध: (श्री भ १।५।१८) तस्यैव हेतो: प्रयतेत कोविदो । कोविद मतलब बुद्धिमान, बहुत बुद्धिमान व्यक्ति । तो उसे किसके लिए प्रयास करना चाहिए? तस्यैव हेतो: : श्री कृष्ण के चरण कमलों की शरण पाने के लिए। मानव जीवन का एकमात्र प्रयास होना चाहिए कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों की अाश्रय लें । यही केवल हमारा काम होना चाहिए ।