HI/760101 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मद्रास में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"वेदान्त सूत्र में पूछा गया है, अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। ब्रह्मण क्या है? यह मानव जीवन ब्रह्मण को समझने के लिए है। अहम् ब्रह्मास्मि। यह वास्तविक शिक्षा है। तो वह परब्रह्मण...हम ब्रह्मण हैं, लेकिन कृष्ण परब्रह्मण हैं। नित्यो नित्यानां चेतनस चेतनानाम (क.उ. २.२.१३)। वह सर्वोच्च नित्य, शाश्वत हैं। कृष्ण भी शाश्वत हैं; हम भी शाश्वत हैं। न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २.२०)। तो कृष्ण सब हैं…((विराम)... कोई मृत पत्थर नहीं, और हम भी जीवित प्राणी हैं। नित्यो नित्यानां चेतनस चेतनानाम्। और कृष्ण और मुझमें अंतर कहाँ है? अंतर है एको यो बहुनां विदधाति कामान। कृष्ण इन सभी बहुवचन संख्याओं को बनाए रखते हैं। वे एकवचन संख्या हैं।"
760101 - प्रवचन बी.जी. ०३.२७ - मद्रास