HI/760212b - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 08:23, 15 June 2024 by Uma (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७६ Category:HI/अमृत वाणी - मायापुर {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760212MW-MAYAPUR_ND_01.mp3</mp3player>|"यह (आलस्य) राक्षसी...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यह (आलस्य) राक्षसी गुणों से कम है। राक्षसी गुण, उनमें कुछ क्रियाशीलता होती है, और आलस्य अज्ञानता है, अंधकार है। इसलिए बहुत अधिक सोना बहुत बुरा है। यह आलस्य का दूसरा भाग है। निद्राहार-विहारकादि-विजितौ: हमें इस नींद और आलस्य पर विजय प्राप्त करनी होगी। भोजन, निद्रा, आहार, विहार, इन्द्रिय तृप्ति। विहार का अर्थ है इन्द्रिय तृप्ति। हमें इन चीजों को शून्य के बिंदु तक कम करना होगा। यही पूर्णता है। जब सोना नहीं रह जाता, खाना नहीं रह जाता, संभोग नहीं रह जाता और डरना नहीं रह जाता, तब आध्यात्मिक जीवन की पूर्णता होती है। और यह संभव नहीं है, लेकिन जितना संभव हो सके।"
760212 - सुबह की सैर - मायापुर