HI/760228 - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"वास्तव में हमारा पद कृष्ण की सेवा करना है। यही वास्तविक पद है। चैतन्य महाप्रभु अपना उपदेश इस बिंदु से शुरू करते हैं, कि हम कृष्ण के शाश्वत सेवक हैं, और चूँकि हमने सेवा न करने के लिए विद्रोह किया है, इसलिए कृष्ण अपनी असीम दया और करुणा से, अवतरित होते हैं और सिखाते हैं, "हे दुष्ट, आत्मसमर्पण करो। तुम अनावश्यक

क्यों कष्ट सह रहे हो?" सर्व-धर्मान् परित्यज्य माम एकं शरणम् (भ. गी. १८.६६): "हे दुष्ट, तुम इन सभी तथाकथित व्यस्तताओं को छोड़ दो। तुम मेरी शरण में आओ।"

760228 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०९.२१ - मायापुर