HI/760407b - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 17:07, 6 July 2024 by Uma (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७६ Category:HI/अमृत वाणी - वृंदावन {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760407SB-VRNDAVAN_ND_01.mp3</mp3player>|"अतः सब कुछ पूर्ण ह...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"अतः सब कुछ पूर्ण है। ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशः श्रियः (विष्णु पुराण ६.५.४७)। अतः धन भी . . . ऐसा नहीं कि भगवान, परमपुरुष, वे दरिद्र मनुष्य हैं, दरिद्र नारायण। नहीं। वे धन से पूर्ण हैं। वे तुम्हें जितना चाहो उतना धन दे सकते हैं। और भक्त, एक भक्त, निश्चित रूप से कृष्ण से कुछ नहीं चाहता। वह शुद्ध-भक्त है। लेकिन जब उसे आवश्यकता होती है, कृष्ण उसे धन प्रदान करते हैं। कृष्ण से मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है। किसी न किसी तरह, यह आ जाएगा। जैसे एक छोटा बच्चा, माता-पिता पर निर्भर होता है: उसे जो कुछ भी चाहिए, वह माता-पिता से नहीं मांगता, "मुझे ये दे दो।" माता-पिता जानते हैं कि इस बच्चे को यह खाना, यह कपड़ा, यह आराम चाहिए-कुछ भी।"
760407 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०५.५२ - वृंदावन