HI/760414b - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 15:42, 9 July 2024 by Uma (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७६ Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760414SB-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"किसी को छन्दांसि पढ...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"किसी को छन्दांसि पढ़ना या सुनना चाहिए। छन्दांसि अधियिता गुरो: आहुता (श्री. भा. ०७.१२.०३)। यह गुरु का कर्तव्य है। आदौ गुरु आश्रयम् (बी. र. स. १.१.७४)। तद्विज्ञानार्थं स गुरुम् एव अभिगच्छेत (एम्. यू. १.२.१२)। तद्विज्ञान, पारलौकिक ज्ञान के लिए व्यक्ति को गुरु के पास जाना चाहिए। अतः गुरु-कुल का अर्थ है गुरु का स्थान। इसलिए वह शिष्यों को वैदिक साहित्य सीखने के लिए रखता है। यह गुरुकुल है। हम इतने बड़े-बड़े घर बना रहे हैं। क्यों? हम लोगों को यहाँ आने और इस गुरुकुल में रहने और वैदिक साहित्य सीखने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। यह हमारा उद्देश्य है।"
760414 - प्रवचन श्री. भा. ०७.१२.०३ - बॉम्बे