HI/760420b - श्रील प्रभुपाद मेलबोर्न में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"बद्ध जीवन का अर्थ है भौतिक प्रकृति के नियमों और विनियमन के अधीन होना। यह बद्ध जीवन है। जैसे हमें यह शरीर मिला है। यह भी भौतिक प्रकृति की एक शर्त है। हमें विभिन्न प्रकार के शरीर मिले हैं, क्यों? क्योंकि हम बद्ध हैं। हमारे कर्म के अनुसार हमें विभिन्न प्रकार के शरीर मिले हैं, 8,400,000 शरीर। इसलिए मुक्त जीवन का अर्थ है इस भौतिक प्रकृति की शर्त के अधीन न होना। यह मुक्त जीवन है। बद्ध जीवन में चार दोष हैं। जहाँ तक हमारे ज्ञान का संबंध है, कई अन्य स्थितियों में से यह दोषपूर्ण है। क्यों? क्योंकि हम गलती करते हैं। हम में से हर कोई, हम गलती करते हैं, हम भ्रमित हैं, हमारी इंद्रियाँ अपूर्ण हैं, और हमारे पास धोखा देने की प्रवृत्ति है। यह बद्ध जीवन के चार दोष हैं। लेकिन मुक्त जीवन में, ऐसी कोई शर्त नहीं है।"
760420 - प्रवचन भ. गी. ०९.०२ - मेलबोर्न