HI/760503 - श्रील प्रभुपाद फ़िजी में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आपको अपना शरीर बदलना होगा। और जीवन के विभिन्न प्रकार हैं, इसलिए यह आप पर निर्भर करता है कि आपको किस प्रकार का शरीर मिला है। आप अपने शरीर को कृष्ण का सहयोगी बनने तक बदल सकते हैं। मद्य-याजिनो 'पि यान्ति माम् (भ. गी. ९.२५). यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद् धाम . . . (भ. गी. १५.६). ये जानकारियाँ हैं। इसलिए यदि आपको अगले जीवन की तैयारी करनी है, तो घर वापस, भागवत धाम वापस क्यों नहीं जाते? यद् गत्वा न निवर्तन्ते। यह बुद्धिमानी है? या आधुनिक बन जाना और अगले जीवन में कुत्ता बन जाना। कौन सी बुद्धिमानी है? शास्त्र कहता है: "नहीं, यह बुद्धिमानी है।" क्या? तपो दिव्यं पुत्रका येन शुद्धयेद् सत्त्वम् (श्री. भा. ५.५.१)। इस जीवन का उपयोग तपस्या के लिए, अपने अस्तित्व को शुद्ध करने के लिए किया जाना चाहिए। यही शास्त्र है। शास्त्र यह नहीं कहता कि तुम आधुनिक बनो। यह आधुनिक बनना क्या है? बस समय की बर्बादी है।"
760503 - वार्तालाप - फ़िजी