HI/760518 - श्रील प्रभुपाद होनोलूलू में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"अतः दुख की स्थिति से बाहर निकलने के विभिन्न तरीके हैं, कर्मी, ज्ञानी, योगी। लेकिन अंतिम, बहुत आसान प्रक्रिया है, यदि आप एक भक्त बन जाते हैं, यदि आप कृष्ण भावनामृत में लीन हो जाते हैं, तो यह बहुत आसान है। क्षेमो 'कुतो-भयः (श्री. भा. ०६.०१.१७)। तब आपकी समृद्धि, आपका शुभ, निश्चित है। क्षेमो 'कुतो-भयः। अकुतो-भयः का अर्थ है "बिना किसी भय के।" आप स्वयं को कृष्ण भावनामृत में रख सकते हैं जैसा कि निर्धारित है। तब आपका जीवन सुरक्षित है, अकुतो-भयः। इसलिए कोई भय नहीं। क्योंकि क्यों? कृष्ण कहते हैं, अहम् त्वाम सर्व-पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि (भ. गी. १८.६६): "यदि तुम मेरे प्रति समर्पित हो जाओ और यदि तुम अपने आप को मेरे निर्देश के अधीन रखो, तो मैं तुम्हें सुरक्षा प्रदान करूँगा।" इसलिए यह कहा जाता है, अकुतो-भयं। तब तुम्हारा चरित्र निर्मित होगा।"
760518 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.१८ - होनोलूलू