HI/760602 - श्रील प्रभुपाद होनोलूलू में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"शास्त्र, शास्त्र-चक्षुषः। आपको शास्त्र के माध्यम से देखना चाहिए। यही हमारी सलाह है। हम अपने अपूर्ण उपकरणों से नहीं देखते। आंखें अपूर्ण हैं। हमारी सभी इंद्रियां अपूर्ण हैं। चाहे आप माइक्रोस्कोप या टेलीस्कोप या किसी भी स्कोप से देखें, सही देखने की कोई गुंजाइश नहीं है। कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए यह समझाया गया है। इसलिए शास्त्र कहता है, वेदांत कहता है, शास्त्र-चक्षुषः। पश्यन्ति ज्ञान-चक्षुषः (भ. गी. १५.९) भगवद गीता में। पश्यन्ति ज्ञान-चक्षुषा: आँखों को ज्ञान से प्रकाशित किया जाना चाहिए। ये असली आँखें हैं। ये कुंद आँखें आँखें नहीं हैं।
760602 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.३४-३६ - होनोलूलू