HI/760618 - श्रील प्रभुपाद टोरंटो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 07:04, 14 September 2024 by Uma (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७६ Category:HI/अमृत वाणी - टोरंटो {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760618IV-TORONTO_ND_01.mp3</mp3player>|"हिंदू धर्म जैसा कोई...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हिंदू धर्म जैसा कोई शब्द नहीं है।" आप नहीं जानते। कम से कम वेदों में तो हिंदू धर्म जैसा कोई शब्द नहीं है। धर्म का संस्कृत में अनुवाद "विशेषता" के रूप में किया गया है। धर्म किसी तरह का विश्वास नहीं है। रासायनिक संरचना की तरह। चीनी मीठी है-यही धर्म है। चीनी मीठी होनी चाहिए। चीनी तीखी नहीं हो सकती। या मिर्च तीखी होनी चाहिए। अगर मिर्च मीठी है, तो हम उसे अस्वीकार करते हैं, और चीनी तीखी है, तो आप उसे अस्वीकार करते हैं। इसी तरह, हमारी वैदिक प्रणाली मनुष्य को उसके जीवन के अंतिम लक्ष्य के लिए प्रशिक्षित करना है। उस प्रणाली को वर्णाश्रम-धर्म कहा जाता है, जो व्यक्ति को धीरे-धीरे प्रशिक्षित करता है कि वह कैसे पूर्ण मानव बने और अपने जीवन के लक्ष्य को समझे। यही हमारी गतिविधि है। यह किसी विशेष संप्रदाय या विशेष राष्ट्र के लिए नहीं है। नहीं। यह पूरे मानव समाज के लिए है, कि कैसे उन्हें अपने जीवन के लक्ष्य में पूर्ण बनाया जाए।"
760618 - वार्तालाप ए - टोरंटो