BH/Prabhupada 0353 - Write, Read, Talk, Think, Worship, Cook & Eat for Krishna - That is Krsna-kirtana: Difference between revisions

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प्रभुपाद : हमनीं का गोस्वामी लोग के नक़ल ना करे के चाहीं. उ लोग हमेशा खातिर वृन्दावन में रही . जहां जहां भगवान् श्रीकृष्ण के मंदिर होई, जहां जहां उनकर नाम संकीर्तन होई , ओहिजा अपने आप वृन्दावन बन जाई. चैतन्य महाप्रभु कहले रहनीं जे हमार मन हरदम वृन्दावन में ही रहेला. कहे की उनकर मन हर समय श्रीकृष्ण में लागल रहत रहे. उ अपने ही श्रीकृष्ण रहलन, अ उ श्रीकृष्ण के बारे में बतावत रहलन - हमनीं के शिक्षा देबे खातिर. टी चाहे जहां मन होखे रहीं अगर आप श्रीकृष्ण के आगया मानतानी, जैसे की भगवान् कहतानीं जे " मन्मना भाव मद्भक्तः मद्याजी माम् नमस्कुरु " ([[Vanisource:BG 18.65|भ गी १८.६५]]) टी बस ओही जगह पर व्रन्दावन बन जाई. बस जहां अपने बानी. इ बात मत सोचीं जे मेलबोर्न में हमनीं के मंदिर बा त, एही जा मेलबोर्न के विग्रह बा. इ वृन्दावन न ह का ? इ जगह भी वृन्दावन ही ह . अगर नियम से ठीक तरह से विग्रह के पूजा कईल जाव, सब नियम के पालन कईल जाव , टी कवनो जगह होखे ना उ जगह वृन्दावन बन जाई. विशेष कर के वृन्दावन धाम जहां पर भगवान असल में प्रकट भईनी . ओही तरह से एहो वृन्दावन ह, गोलोक व्रन्दावन. एहिजा जे लोग एह मंदिर के देख भाल करता , उहो लोग गोस्वामी कहाई लोग. उच्च तरह के गोस्वामी. एहे हमार विचार बा. गृहमेधी ना, गृहमेधी एक दम ना. गोस्वामी. कहे की एह जगह के गोस्वामी लोग खोज कईले बा, छः गोस्वामी लोग. एही जा सनातन गोस्वामी अईलन, रूप गोस्वामी अईलन. बाद में आउर गोस्वामी लोग भी आईल, जीव गोस्वामी, गोपाल भट्ट गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी  सभे एही जा जुटल लोग, चैतन्य महाप्रभु के आज्ञा के अनुसार , भगवान् श्रीकृष्ण के बारे में उनका लीला, के बारे में किताब लिखे खातिर . हमारा कहे के मतलब बा जे बहुत उच्च स्तर के  आध्यात्मिक पुस्तक उ लोग लीखल. " नाना शास्त्र विचारनैक निपुण सद्धर्म संस्थापकौ " एहे गोस्वामी लोग के काम रहे .  अ  लक्षण  . पहिला निशानी " श्रीकृष्णत्कीर्तन - गान- नर्तन परौ " उ लोग हरदम कृष्ण के कीर्तन में लागल रहत रहे लोग. कृष्ण कीर्तन मतलब ... जईसे हमनीं के खोल , करताल  इ संगे कीर्त्ल कईल जाला. एही के कृष्णा कीरतन कहल जाला. आ कृष्ण के बारे में पुस्तक  लीखल भी त कीर्तन ह . आ भगवान् कृष्ण के ऊपर लीखल किताब पढ़ल - इ हो कृष्णा कीर्तन ह . खाली कीर्तन गावल ही कीर्तन ना ह . अगर अपने कृष्ण का बारे में किताब लिखीं , उनका बारे में पुस्तक पढ़ल कृष्ण के बारे में चर्चा कईल , सोचल उनकर पूजा कईल, उनका खातिर भोग बनावल , उनकर दिहल प्रसाद खाईल ... सब. इ सब कीर्तन ह. टी इ सब गोस्वामी लोग चौबीसों घंटा एह ना ओह तरीका से कृष्ण कीर्तन में लागल रहत रहे लोग. कृष्णोत्कीर्तन - गान - नर्तन - परौ .  कईसे ? प्रेमाम्रिताम्भोनिधिः  . काहे की उ लोग भगवान् के प्रेम के समुन्दर में रहत रहे लोग जब तक ले कृष्ण - प्रेम ना मिले , भगवान् के साथ प्रेम ना हो तब तक ले खाली भगवान के नाम लिहला से फ़ायदा ? जेकरा भगवान खातिर प्रेम ना उपजल , उ उनका खातिर चौबीसों घंटा कईसे लागल रही . इ सोचे के बात बा. .. हमनी का हर घरी भगवान् खातिर समय निकाले  खातिर सोचत रहे के चाहीं. सो कर के समय टी बरबाद होला. बिलकुल बरबाद . टी हमनीं का टाइम बचावे के चाहीं. कीर्तनीयः सदा हरिः ([[Vanisource:CC Adi 17.31| चै च १७.३१]]). कृष्ण के एगो दूसर नाम हरी ह . सदा - हरदम चौबीसों घंटा . गोस्वामी लोग सचमुच चौबीसों घंटा कीर्तन करे लोग. इहे ओह लोग के मिसाल ह. उ लोग बस दू से तीन घंटा ही सोवे में लगावे लोग. एही से " निद्राहार - विहारिकादि - विजितौ " कहल जाव  लोग. उ लोग नींद अ भूख के जीत लिहले रहे लोग. एह सब पर. इ का ह ? निद्राहार , नीद, भोजन,  आनंद विहार के मतलब ह इन्द्रिय सुख , आहार के मतलब ह भोजन चाहे संग्रह . सामान्य रूप से भोजन -  आहार,  निद्रा या नींद , निद्राहार -  विहारिकादि  - विजितौ . जीत लिहल ही वैष्णव कहल जाला. उ लोग ना जे चौबीस घंटा में छत्तीस घंटा नींद ले सकता. ( हंसी...) आ फेर गोस्वामी जी भी  कहाव.. का कहल जाव  ? गो - दास . उ लोग गो स्वामी ना गो दास ह . गो मतलब "इन्द्रिय" आ दास माने "नौकर". टी हमनीं के उद्देश्य होखे के चाहीं जे इन्द्रिय के नौकर ना बन के भगवान के सेवक बनीं. इ हे आदमी गोस्वामी कहल जाई. काहे की जब तक ले इन्द्रिय पर विजय ना होई , तब तक ले उ कहत रही... खाना खा लीं, सूत जाईं, मैथुन करीं, हई करीं, उ काम करीं.. इ भौतिक जीवन ह . भौतिक जीवन - एह में इन्द्रिय लोग हर घरी निर्देश देत रहेला. एही भौतिक जीवन में हमनीं के गोस्वामी बने के चेष्टा करे के चाहीं. आधुनिक गोस्वामी ( ?) मतलब जब मन निर्देश देवे . थोड़ा और खा लें , सो लें , थोड़ा मैथुन भी , सुरक्षा खातिर थोडा और पईसा. त इ सब भौतिकता ह . डिफेन्स खातिर फण्ड माने आउर पईसा . इ सब चीज भौतिक जेवण के हिस्सा ह. तब आध्यात्मिक जीवन के मतलब " ना ना , ना त निद्रा ना आहार " इन्द्रिय कहता " इ कर , उ कर " आ अपना के मजबूत दिखावे के चाहीं , आ जबाब देबे के चाहीं जे " ना भाई एक दम ना " तब गोस्वामी .. एही के गोस्वामी कहल जाई. आ उ गृहमेधी ? गृहस्थ भी गोस्वामी बन सकता. ओही तरीका से. गृहस्थ के मतलब ह जे 'इन्द्रिय का निर्देश पर काम ना करे " बस गोस्वामी बन गईनीं . नरोत्तम दास  ठाकुर  कहत बाडन .. "गृहेते वा वनेते थाके , हा गौरांग बोले डाके " हा गौरांग . हमेशा बोले के चाहीं निताई गौरांग , आ निताई गौर का बारे में सोचे के चाहें. एईसन आदमी .. नरोत्तम दास ठाकुर कहत बाडन जे .. भले उ घर पर रहे. उ सन्यासी होखे  चाहे गृहस्थ ओह से कवनो मतलब नईखे काहे की उ निताई गौर प्रभु के ध्यान में रहे के चाहीं .. त नरोत्तम मांगे तार संग गृहे वा वनेते थाके हां गौरांग बोले डाके , नरोत्तम मांगे तार  संग नरोत्तम जी ओह आदमी के सांगत चाहत बाडन कृष्ण उत्कीर्तन गान नर्तन परौ प्रेमाम्रिताम्बोनिधिः धीराधीर जन प्रियौ त गोस्वामी लोग का सब तरह के आदमी के प्रिय बने के चाहीं. दू तरह के लोग होला. धीर आ अधीर . धीर - मतलब जेकरा अपना इन्द्रिय पर नियंत्रण बा . गोस्वामी लोग का हर तरह के लोग से सनेह होला. धीराधीर - जन - प्रियौ .  त कईसे इ बन सकल जाला ? जब इ छ गोस्वामी लोग वृन्दावन में रहे त लोग का बीच में उ लोग प्रिय रहे . एह वृन्दावन धाम में भी , गाँव के लोग लोग के बीच में अगर पति पत्नी का बीच में भी अगर झगड़ा होखे त उ लोग छ गोस्वामी लोग का पास जाव. आ कहे .. तनी हमनी के झगड़ा सलटा दें. सनातन गोस्वामी आपण फैसला दीहन " तू गलती कईले बाड़ ". बस आ उ लोग स्वीकार कर ली. बताईं उ लोग केतना लोकप्रिय रहे. सनातन गोस्वामी ओह लोग के परिवार के झगड़ा सुलह करा देस. त इहे ह " धीराधीर - जन -प्रियौ " गाँव के लोग साधारन लोग रहे लेकिन सनातन गोस्वामी के आज्ञा पालन करत रहे लोग. एही कारण उ सफल रहलन . एही से उ लोग सनातन गोस्वामी के आज्ञा पालन करे लोग. ओह कारण उहो लोग मुक्तात्मा भ गईल. ओह लोग में गलती हो सकता , बाकिर उ लोग सनातन गोस्वामी के भगत रहे लोग. ओह लोग पर सनातन गोस्वामी के किरपा रहे. इहे गुण गोस्वामी के ह. तूहो लोग उनका के बोला सकत बाड़, प्रसाद दे सकत बाड़, उनका पर दया राख. आरे भाई सुन , हरे कृष्ण , हेने आव, हरे कृष्ण भज , परसाद ल . बस ओह लोग पर तहार भी कंट्रोल हो जाई. अगर जेहू वैष्णव के आज्ञा पालन करे त उ हो वैष्णव हो जाई. इ अज्ञात सुकृति ह. कहे की जब आप जा रहल बानी उ कहे " हरे कृष्ण" " जय राधे" इ आदर करे के तरीका ह . वैष्णव के आदर करला  से ओह लोग में भी उन्नति होला. एही से आप के वैष्णव बने के चाहीं , ना त उ आदर काहे करी. आदर मंगल न जाला . इ अपने मिलेला . आप के देख के उ आदर करी. अतब गोस्वामी के गुण " धीराधीर - जन - प्रियौ "  
प्रभुपाद : हमनीं का गोस्वामी लोग के नक़ल ना करे के चाहीं. उ लोग हमेशा खातिर वृन्दावन में रही . जहां जहां भगवान् श्रीकृष्ण के मंदिर होई, जहां जहां उनकर नाम संकीर्तन होई , ओहिजा अपने आप वृन्दावन बन जाई. चैतन्य महाप्रभु कहले रहनीं जे हमार मन हरदम वृन्दावन में ही रहेला. कहे की उनकर मन हर समय श्रीकृष्ण में लागल रहत रहे. उ अपने ही श्रीकृष्ण रहलन, अ उ श्रीकृष्ण के बारे में बतावत रहलन - हमनीं के शिक्षा देबे खातिर. टी चाहे जहां मन होखे रहीं अगर आप श्रीकृष्ण के आगया मानतानी, जैसे की भगवान् कहतानीं जे " मन्मना भाव मद्भक्तः मद्याजी माम् नमस्कुरु " ([[Vanisource:BG 18.65 (1972)|भ गी १८.६५]]) टी बस ओही जगह पर व्रन्दावन बन जाई. बस जहां अपने बानी. इ बात मत सोचीं जे मेलबोर्न में हमनीं के मंदिर बा त, एही जा मेलबोर्न के विग्रह बा. इ वृन्दावन न ह का ? इ जगह भी वृन्दावन ही ह . अगर नियम से ठीक तरह से विग्रह के पूजा कईल जाव, सब नियम के पालन कईल जाव , टी कवनो जगह होखे ना उ जगह वृन्दावन बन जाई. विशेष कर के वृन्दावन धाम जहां पर भगवान असल में प्रकट भईनी . ओही तरह से एहो वृन्दावन ह, गोलोक व्रन्दावन. एहिजा जे लोग एह मंदिर के देख भाल करता , उहो लोग गोस्वामी कहाई लोग. उच्च तरह के गोस्वामी. एहे हमार विचार बा. गृहमेधी ना, गृहमेधी एक दम ना. गोस्वामी. कहे की एह जगह के गोस्वामी लोग खोज कईले बा, छः गोस्वामी लोग. एही जा सनातन गोस्वामी अईलन, रूप गोस्वामी अईलन. बाद में आउर गोस्वामी लोग भी आईल, जीव गोस्वामी, गोपाल भट्ट गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी  सभे एही जा जुटल लोग, चैतन्य महाप्रभु के आज्ञा के अनुसार , भगवान् श्रीकृष्ण के बारे में उनका लीला, के बारे में किताब लिखे खातिर . हमारा कहे के मतलब बा जे बहुत उच्च स्तर के  आध्यात्मिक पुस्तक उ लोग लीखल. " नाना शास्त्र विचारनैक निपुण सद्धर्म संस्थापकौ " एहे गोस्वामी लोग के काम रहे .  अ  लक्षण  . पहिला निशानी " श्रीकृष्णत्कीर्तन - गान- नर्तन परौ " उ लोग हरदम कृष्ण के कीर्तन में लागल रहत रहे लोग. कृष्ण कीर्तन मतलब ... जईसे हमनीं के खोल , करताल  इ संगे कीर्त्ल कईल जाला. एही के कृष्णा कीरतन कहल जाला. आ कृष्ण के बारे में पुस्तक  लीखल भी त कीर्तन ह . आ भगवान् कृष्ण के ऊपर लीखल किताब पढ़ल - इ हो कृष्णा कीर्तन ह . खाली कीर्तन गावल ही कीर्तन ना ह . अगर अपने कृष्ण का बारे में किताब लिखीं , उनका बारे में पुस्तक पढ़ल कृष्ण के बारे में चर्चा कईल , सोचल उनकर पूजा कईल, उनका खातिर भोग बनावल , उनकर दिहल प्रसाद खाईल ... सब. इ सब कीर्तन ह. टी इ सब गोस्वामी लोग चौबीसों घंटा एह ना ओह तरीका से कृष्ण कीर्तन में लागल रहत रहे लोग. कृष्णोत्कीर्तन - गान - नर्तन - परौ .  कईसे ? प्रेमाम्रिताम्भोनिधिः  . काहे की उ लोग भगवान् के प्रेम के समुन्दर में रहत रहे लोग जब तक ले कृष्ण - प्रेम ना मिले , भगवान् के साथ प्रेम ना हो तब तक ले खाली भगवान के नाम लिहला से फ़ायदा ? जेकरा भगवान खातिर प्रेम ना उपजल , उ उनका खातिर चौबीसों घंटा कईसे लागल रही . इ सोचे के बात बा. .. हमनी का हर घरी भगवान् खातिर समय निकाले  खातिर सोचत रहे के चाहीं. सो कर के समय टी बरबाद होला. बिलकुल बरबाद . टी हमनीं का टाइम बचावे के चाहीं. कीर्तनीयः सदा हरिः ([[Vanisource:CC Adi 17.31| चै च १७.३१]]). कृष्ण के एगो दूसर नाम हरी ह . सदा - हरदम चौबीसों घंटा . गोस्वामी लोग सचमुच चौबीसों घंटा कीर्तन करे लोग. इहे ओह लोग के मिसाल ह. उ लोग बस दू से तीन घंटा ही सोवे में लगावे लोग. एही से " निद्राहार - विहारिकादि - विजितौ " कहल जाव  लोग. उ लोग नींद अ भूख के जीत लिहले रहे लोग. एह सब पर. इ का ह ? निद्राहार , नीद, भोजन,  आनंद विहार के मतलब ह इन्द्रिय सुख , आहार के मतलब ह भोजन चाहे संग्रह . सामान्य रूप से भोजन -  आहार,  निद्रा या नींद , निद्राहार -  विहारिकादि  - विजितौ . जीत लिहल ही वैष्णव कहल जाला. उ लोग ना जे चौबीस घंटा में छत्तीस घंटा नींद ले सकता. ( हंसी...) आ फेर गोस्वामी जी भी  कहाव.. का कहल जाव  ? गो - दास . उ लोग गो स्वामी ना गो दास ह . गो मतलब "इन्द्रिय" आ दास माने "नौकर". टी हमनीं के उद्देश्य होखे के चाहीं जे इन्द्रिय के नौकर ना बन के भगवान के सेवक बनीं. इ हे आदमी गोस्वामी कहल जाई. काहे की जब तक ले इन्द्रिय पर विजय ना होई , तब तक ले उ कहत रही... खाना खा लीं, सूत जाईं, मैथुन करीं, हई करीं, उ काम करीं.. इ भौतिक जीवन ह . भौतिक जीवन - एह में इन्द्रिय लोग हर घरी निर्देश देत रहेला. एही भौतिक जीवन में हमनीं के गोस्वामी बने के चेष्टा करे के चाहीं. आधुनिक गोस्वामी ( ?) मतलब जब मन निर्देश देवे . थोड़ा और खा लें , सो लें , थोड़ा मैथुन भी , सुरक्षा खातिर थोडा और पईसा. त इ सब भौतिकता ह . डिफेन्स खातिर फण्ड माने आउर पईसा . इ सब चीज भौतिक जेवण के हिस्सा ह. तब आध्यात्मिक जीवन के मतलब " ना ना , ना त निद्रा ना आहार " इन्द्रिय कहता " इ कर , उ कर " आ अपना के मजबूत दिखावे के चाहीं , आ जबाब देबे के चाहीं जे " ना भाई एक दम ना " तब गोस्वामी .. एही के गोस्वामी कहल जाई. आ उ गृहमेधी ? गृहस्थ भी गोस्वामी बन सकता. ओही तरीका से. गृहस्थ के मतलब ह जे 'इन्द्रिय का निर्देश पर काम ना करे " बस गोस्वामी बन गईनीं . नरोत्तम दास  ठाकुर  कहत बाडन .. "गृहेते वा वनेते थाके , हा गौरांग बोले डाके " हा गौरांग . हमेशा बोले के चाहीं निताई गौरांग , आ निताई गौर का बारे में सोचे के चाहें. एईसन आदमी .. नरोत्तम दास ठाकुर कहत बाडन जे .. भले उ घर पर रहे. उ सन्यासी होखे  चाहे गृहस्थ ओह से कवनो मतलब नईखे काहे की उ निताई गौर प्रभु के ध्यान में रहे के चाहीं .. त नरोत्तम मांगे तार संग गृहे वा वनेते थाके हां गौरांग बोले डाके , नरोत्तम मांगे तार  संग नरोत्तम जी ओह आदमी के सांगत चाहत बाडन कृष्ण उत्कीर्तन गान नर्तन परौ प्रेमाम्रिताम्बोनिधिः धीराधीर जन प्रियौ त गोस्वामी लोग का सब तरह के आदमी के प्रिय बने के चाहीं. दू तरह के लोग होला. धीर आ अधीर . धीर - मतलब जेकरा अपना इन्द्रिय पर नियंत्रण बा . गोस्वामी लोग का हर तरह के लोग से सनेह होला. धीराधीर - जन - प्रियौ .  त कईसे इ बन सकल जाला ? जब इ छ गोस्वामी लोग वृन्दावन में रहे त लोग का बीच में उ लोग प्रिय रहे . एह वृन्दावन धाम में भी , गाँव के लोग लोग के बीच में अगर पति पत्नी का बीच में भी अगर झगड़ा होखे त उ लोग छ गोस्वामी लोग का पास जाव. आ कहे .. तनी हमनी के झगड़ा सलटा दें. सनातन गोस्वामी आपण फैसला दीहन " तू गलती कईले बाड़ ". बस आ उ लोग स्वीकार कर ली. बताईं उ लोग केतना लोकप्रिय रहे. सनातन गोस्वामी ओह लोग के परिवार के झगड़ा सुलह करा देस. त इहे ह " धीराधीर - जन -प्रियौ " गाँव के लोग साधारन लोग रहे लेकिन सनातन गोस्वामी के आज्ञा पालन करत रहे लोग. एही कारण उ सफल रहलन . एही से उ लोग सनातन गोस्वामी के आज्ञा पालन करे लोग. ओह कारण उहो लोग मुक्तात्मा भ गईल. ओह लोग में गलती हो सकता , बाकिर उ लोग सनातन गोस्वामी के भगत रहे लोग. ओह लोग पर सनातन गोस्वामी के किरपा रहे. इहे गुण गोस्वामी के ह. तूहो लोग उनका के बोला सकत बाड़, प्रसाद दे सकत बाड़, उनका पर दया राख. आरे भाई सुन , हरे कृष्ण , हेने आव, हरे कृष्ण भज , परसाद ल . बस ओह लोग पर तहार भी कंट्रोल हो जाई. अगर जेहू वैष्णव के आज्ञा पालन करे त उ हो वैष्णव हो जाई. इ अज्ञात सुकृति ह. कहे की जब आप जा रहल बानी उ कहे " हरे कृष्ण" " जय राधे" इ आदर करे के तरीका ह . वैष्णव के आदर करला  से ओह लोग में भी उन्नति होला. एही से आप के वैष्णव बने के चाहीं , ना त उ आदर काहे करी. आदर मंगल न जाला . इ अपने मिलेला . आप के देख के उ आदर करी. अतब गोस्वामी के गुण " धीराधीर - जन - प्रियौ "  
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Latest revision as of 21:42, 8 June 2018



Lecture on SB 2.1.2 -- Vrndavana, March 17, 1974

प्रभुपाद : हमनीं का गोस्वामी लोग के नक़ल ना करे के चाहीं. उ लोग हमेशा खातिर वृन्दावन में रही . जहां जहां भगवान् श्रीकृष्ण के मंदिर होई, जहां जहां उनकर नाम संकीर्तन होई , ओहिजा अपने आप वृन्दावन बन जाई. चैतन्य महाप्रभु कहले रहनीं जे हमार मन हरदम वृन्दावन में ही रहेला. कहे की उनकर मन हर समय श्रीकृष्ण में लागल रहत रहे. उ अपने ही श्रीकृष्ण रहलन, अ उ श्रीकृष्ण के बारे में बतावत रहलन - हमनीं के शिक्षा देबे खातिर. टी चाहे जहां मन होखे रहीं अगर आप श्रीकृष्ण के आगया मानतानी, जैसे की भगवान् कहतानीं जे " मन्मना भाव मद्भक्तः मद्याजी माम् नमस्कुरु " (भ गी १८.६५) टी बस ओही जगह पर व्रन्दावन बन जाई. बस जहां अपने बानी. इ बात मत सोचीं जे मेलबोर्न में हमनीं के मंदिर बा त, एही जा मेलबोर्न के विग्रह बा. इ वृन्दावन न ह का ? इ जगह भी वृन्दावन ही ह . अगर नियम से ठीक तरह से विग्रह के पूजा कईल जाव, सब नियम के पालन कईल जाव , टी कवनो जगह होखे ना उ जगह वृन्दावन बन जाई. विशेष कर के वृन्दावन धाम जहां पर भगवान असल में प्रकट भईनी . ओही तरह से एहो वृन्दावन ह, गोलोक व्रन्दावन. एहिजा जे लोग एह मंदिर के देख भाल करता , उहो लोग गोस्वामी कहाई लोग. उच्च तरह के गोस्वामी. एहे हमार विचार बा. गृहमेधी ना, गृहमेधी एक दम ना. गोस्वामी. कहे की एह जगह के गोस्वामी लोग खोज कईले बा, छः गोस्वामी लोग. एही जा सनातन गोस्वामी अईलन, रूप गोस्वामी अईलन. बाद में आउर गोस्वामी लोग भी आईल, जीव गोस्वामी, गोपाल भट्ट गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी सभे एही जा जुटल लोग, चैतन्य महाप्रभु के आज्ञा के अनुसार , भगवान् श्रीकृष्ण के बारे में उनका लीला, के बारे में किताब लिखे खातिर . हमारा कहे के मतलब बा जे बहुत उच्च स्तर के आध्यात्मिक पुस्तक उ लोग लीखल. " नाना शास्त्र विचारनैक निपुण सद्धर्म संस्थापकौ " एहे गोस्वामी लोग के काम रहे . अ लक्षण . पहिला निशानी " श्रीकृष्णत्कीर्तन - गान- नर्तन परौ " उ लोग हरदम कृष्ण के कीर्तन में लागल रहत रहे लोग. कृष्ण कीर्तन मतलब ... जईसे हमनीं के खोल , करताल इ संगे कीर्त्ल कईल जाला. एही के कृष्णा कीरतन कहल जाला. आ कृष्ण के बारे में पुस्तक लीखल भी त कीर्तन ह . आ भगवान् कृष्ण के ऊपर लीखल किताब पढ़ल - इ हो कृष्णा कीर्तन ह . खाली कीर्तन गावल ही कीर्तन ना ह . अगर अपने कृष्ण का बारे में किताब लिखीं , उनका बारे में पुस्तक पढ़ल कृष्ण के बारे में चर्चा कईल , सोचल उनकर पूजा कईल, उनका खातिर भोग बनावल , उनकर दिहल प्रसाद खाईल ... सब. इ सब कीर्तन ह. टी इ सब गोस्वामी लोग चौबीसों घंटा एह ना ओह तरीका से कृष्ण कीर्तन में लागल रहत रहे लोग. कृष्णोत्कीर्तन - गान - नर्तन - परौ . कईसे ? प्रेमाम्रिताम्भोनिधिः . काहे की उ लोग भगवान् के प्रेम के समुन्दर में रहत रहे लोग जब तक ले कृष्ण - प्रेम ना मिले , भगवान् के साथ प्रेम ना हो तब तक ले खाली भगवान के नाम लिहला से फ़ायदा ? जेकरा भगवान खातिर प्रेम ना उपजल , उ उनका खातिर चौबीसों घंटा कईसे लागल रही . इ सोचे के बात बा. .. हमनी का हर घरी भगवान् खातिर समय निकाले खातिर सोचत रहे के चाहीं. सो कर के समय टी बरबाद होला. बिलकुल बरबाद . टी हमनीं का टाइम बचावे के चाहीं. कीर्तनीयः सदा हरिः ( चै च १७.३१). कृष्ण के एगो दूसर नाम हरी ह . सदा - हरदम चौबीसों घंटा . गोस्वामी लोग सचमुच चौबीसों घंटा कीर्तन करे लोग. इहे ओह लोग के मिसाल ह. उ लोग बस दू से तीन घंटा ही सोवे में लगावे लोग. एही से " निद्राहार - विहारिकादि - विजितौ " कहल जाव लोग. उ लोग नींद अ भूख के जीत लिहले रहे लोग. एह सब पर. इ का ह ? निद्राहार , नीद, भोजन, आनंद विहार के मतलब ह इन्द्रिय सुख , आहार के मतलब ह भोजन चाहे संग्रह . सामान्य रूप से भोजन - आहार, निद्रा या नींद , निद्राहार - विहारिकादि - विजितौ . जीत लिहल ही वैष्णव कहल जाला. उ लोग ना जे चौबीस घंटा में छत्तीस घंटा नींद ले सकता. ( हंसी...) आ फेर गोस्वामी जी भी कहाव.. का कहल जाव  ? गो - दास . उ लोग गो स्वामी ना गो दास ह . गो मतलब "इन्द्रिय" आ दास माने "नौकर". टी हमनीं के उद्देश्य होखे के चाहीं जे इन्द्रिय के नौकर ना बन के भगवान के सेवक बनीं. इ हे आदमी गोस्वामी कहल जाई. काहे की जब तक ले इन्द्रिय पर विजय ना होई , तब तक ले उ कहत रही... खाना खा लीं, सूत जाईं, मैथुन करीं, हई करीं, उ काम करीं.. इ भौतिक जीवन ह . भौतिक जीवन - एह में इन्द्रिय लोग हर घरी निर्देश देत रहेला. एही भौतिक जीवन में हमनीं के गोस्वामी बने के चेष्टा करे के चाहीं. आधुनिक गोस्वामी ( ?) मतलब जब मन निर्देश देवे . थोड़ा और खा लें , सो लें , थोड़ा मैथुन भी , सुरक्षा खातिर थोडा और पईसा. त इ सब भौतिकता ह . डिफेन्स खातिर फण्ड माने आउर पईसा . इ सब चीज भौतिक जेवण के हिस्सा ह. तब आध्यात्मिक जीवन के मतलब " ना ना , ना त निद्रा ना आहार " इन्द्रिय कहता " इ कर , उ कर " आ अपना के मजबूत दिखावे के चाहीं , आ जबाब देबे के चाहीं जे " ना भाई एक दम ना " तब गोस्वामी .. एही के गोस्वामी कहल जाई. आ उ गृहमेधी ? गृहस्थ भी गोस्वामी बन सकता. ओही तरीका से. गृहस्थ के मतलब ह जे 'इन्द्रिय का निर्देश पर काम ना करे " बस गोस्वामी बन गईनीं . नरोत्तम दास ठाकुर कहत बाडन .. "गृहेते वा वनेते थाके , हा गौरांग बोले डाके " हा गौरांग . हमेशा बोले के चाहीं निताई गौरांग , आ निताई गौर का बारे में सोचे के चाहें. एईसन आदमी .. नरोत्तम दास ठाकुर कहत बाडन जे .. भले उ घर पर रहे. उ सन्यासी होखे चाहे गृहस्थ ओह से कवनो मतलब नईखे काहे की उ निताई गौर प्रभु के ध्यान में रहे के चाहीं .. त नरोत्तम मांगे तार संग गृहे वा वनेते थाके हां गौरांग बोले डाके , नरोत्तम मांगे तार संग नरोत्तम जी ओह आदमी के सांगत चाहत बाडन कृष्ण उत्कीर्तन गान नर्तन परौ प्रेमाम्रिताम्बोनिधिः धीराधीर जन प्रियौ त गोस्वामी लोग का सब तरह के आदमी के प्रिय बने के चाहीं. दू तरह के लोग होला. धीर आ अधीर . धीर - मतलब जेकरा अपना इन्द्रिय पर नियंत्रण बा . गोस्वामी लोग का हर तरह के लोग से सनेह होला. धीराधीर - जन - प्रियौ . त कईसे इ बन सकल जाला ? जब इ छ गोस्वामी लोग वृन्दावन में रहे त लोग का बीच में उ लोग प्रिय रहे . एह वृन्दावन धाम में भी , गाँव के लोग लोग के बीच में अगर पति पत्नी का बीच में भी अगर झगड़ा होखे त उ लोग छ गोस्वामी लोग का पास जाव. आ कहे .. तनी हमनी के झगड़ा सलटा दें. सनातन गोस्वामी आपण फैसला दीहन " तू गलती कईले बाड़ ". बस आ उ लोग स्वीकार कर ली. बताईं उ लोग केतना लोकप्रिय रहे. सनातन गोस्वामी ओह लोग के परिवार के झगड़ा सुलह करा देस. त इहे ह " धीराधीर - जन -प्रियौ " गाँव के लोग साधारन लोग रहे लेकिन सनातन गोस्वामी के आज्ञा पालन करत रहे लोग. एही कारण उ सफल रहलन . एही से उ लोग सनातन गोस्वामी के आज्ञा पालन करे लोग. ओह कारण उहो लोग मुक्तात्मा भ गईल. ओह लोग में गलती हो सकता , बाकिर उ लोग सनातन गोस्वामी के भगत रहे लोग. ओह लोग पर सनातन गोस्वामी के किरपा रहे. इहे गुण गोस्वामी के ह. तूहो लोग उनका के बोला सकत बाड़, प्रसाद दे सकत बाड़, उनका पर दया राख. आरे भाई सुन , हरे कृष्ण , हेने आव, हरे कृष्ण भज , परसाद ल . बस ओह लोग पर तहार भी कंट्रोल हो जाई. अगर जेहू वैष्णव के आज्ञा पालन करे त उ हो वैष्णव हो जाई. इ अज्ञात सुकृति ह. कहे की जब आप जा रहल बानी उ कहे " हरे कृष्ण" " जय राधे" इ आदर करे के तरीका ह . वैष्णव के आदर करला से ओह लोग में भी उन्नति होला. एही से आप के वैष्णव बने के चाहीं , ना त उ आदर काहे करी. आदर मंगल न जाला . इ अपने मिलेला . आप के देख के उ आदर करी. अतब गोस्वामी के गुण " धीराधीर - जन - प्रियौ "