HI/580814 - आनंद प्रकाश को लिखित पत्र, बॉम्बे

Revision as of 10:18, 18 March 2021 by Harsh (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/1947 से 1964 - श्रील प्रभुपाद के पत्र‎ Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
आनंद प्रकाश को पत्र (पृष्ठ १ से २)
आनंद प्रकाश को पत्र (पृष्ठ २ से २)


अगस्त १४, १९५८

श्री आनंद प्रकाश,
सी/ओ राय साहिब माधो राम एंड संस,
नई सड़क,
दिल्ली।

श्रीमान,

चूंकि आप सज्जन जनहित के गतिविधियों में संलग्न है, अतः मुझे अपने प्रचार कार्य के प्रगति के लिए आपकी मदद की आवश्यकता है। संक्षेप में कार्यक्रम एक अपील के रूप में इसके साथ संलग्न है जिसे कृपया पढ़ें और उपकृत करें। इस पत्र का जवाब मिलने पर, मैं अपना प्रकाशन हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में आप तक पहुंचा दूंगा।

इस योजना का संपूर्ण अभिप्राय भगवान चैतन्य के पंथ का प्रचार करना है, जो प्रत्येक जीव पर परमभगवान के दिव्य प्रेम का उच्चतम लाभ प्रदान करना चाहते हैं और केवल यह ही दुनिया में शांति ला सकता है।

एक अनुभवी दार्शनिक के रूप में यह तथ्य आपके सामने छिपा नहीं है। भगवान चैतन्य के अनुसार प्रत्येक भारतीय दुनिया के बाकी हिस्सों का भला करने के लिए सक्षम है, बशर्ते उसने जीवन के मिशन को पूरा किया है। और जीवन के मिशन, हर जीव में सुप्त दिव्य चेतना को पुनः जागृत करना है।

प्रभु द्वारा सुझाई गई प्रक्रिया बहुत ही सरल और सादा है। वह केवल कृष्ण के संदेश (भगवद-गीता) या कृष्ण के बारे में (आध्यात्मिक भागवतम्) सुनने के लिए या दोनों प्रक्रियाओं के मिश्रण - श्री चैतन्य चरितामृत के संदेश को ग्रहण करने के लिए, एक उपयुक्त वातावरण की स्थापना करना है। इसलिए मैं आपके सहयोग को प्राप्त करने के लिए आपके पास आया हूं। मुझे उम्मीद है कि आप इनकार नहीं करेंगे।

बात यह है कि हर एक जीव - सर्वोच्च भगवान श्री कृष्ण का ही अंश है और वह किसी न किसी तरह से भौतिक ऊर्जा के संपर्क में आ चुका है, और अब वह समस्त जगत के भोक्ता (श्री कृष्ण) के विकृत प्रतिबिंब को ग्रहण कर, इस भौतिक लोक में अपनी प्रभुत्ता स्थापित करना चाहता है। दूसरे शब्दों में, हर एक जीव, अपने इस विडंबक अभिलाषा के कारण भौतिक प्रकृति के तिगुने दुर्गतियों से ग्रस्त रहता है, जो की पुलिस के दंड के भाँति, उसके सुधार को निश्चित करती हैं। मूर्ख जीव, विभिन्न योजनाओं द्वारा प्रकृति के कड़े कानूनों को दूर करने की कोशिश कर रहा है, जो _____ नियमित रूप से निराश हो रहे हैं। माया या भौतिक __ का अंतिम जाल __ के साथ एक बनने का अवसर की पेशकश है ____ जिससे वह गुमराह कर रहा है (__ स्थायी रूप से जीवन की विभिन्न श्रेणियों के तहत भौतिक बंधन पर खींचने के लिए___ । प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण की चेतना को जागृत करने मात्र से, जीव अपने सभी पापों से मुक्त हो कर, इस उथल-पुथल से बाहर निकल सकता है। यही भगवद-गीता के अंतिम निर्देश हैं।

भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु, जो भक्त के रूप में स्वयं श्री कृष्ण हैं, सभी व्यावहारिक उद्देश्यों और मानवता के लाभ के लिए बड़े पैमाने पर भगवद गीता के पंथ का प्रचार किया था। भगवद्-गीता में कहा गया है कि जो व्यक्ति भक्ति के पंथ का हर तरह से प्रचार करने की जिम्मेदारी लेता है, वह भगवान का सबसे पसंदीदा व्यक्ति बन जाता है। इस मिशन को आधुनिक विचार पद्धति के समझ में लाना होगा और इस उद्देश्य के लिए मैंने ऊपर उल्लेखित नाम का __ संघ पंजीकृत किया है।

मेरी इच्छा है कि आप जैसे व्यक्ति इस संस्था का प्रमुख बन कर, प्रचार के कार्य को आधुनिक सभ्यता के परिस्थिति व समय के आधार पर, अनुकूल बनाएँ। पुराने तरीकों के अंतर्गत, पुरुषों के गैर-जिम्मेदार वर्ग पर प्रचार के मामले को छोड़ने से इस महत्वपूर्ण मिशन की प्रगति नही होगी। जिम्मेदार सज्जनों को अन्य मामलों का प्रबंधन करने के साथ साथ, प्रचार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और फिर यह मिशन सफल होगा। वर्तमान विश्व की स्थिति बहुत अधिक उलझी हुई है। भगवद्-गीता के सरल विधियों द्वारा, इन तंग स्थितियों को ढीला करना सभी सात्विक पुरुषों का कर्तव्य है और परिणाम निश्चित रूप से अच्छा ही होगा।

मुझे आशा है कि आप इस मामले पर गंभीर विमर्श करेंगे और प्रभु की संतुष्टि के लिए कुछ व्यावहारिक सेवा भी करेंगे।

आपका आभारी,

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी