HI/610418 - श्री नाकानो को लिखित पत्र, दिल्ली

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श्री नैकानो को पत्र (पृष्ठ १ से ?) (पृष्ठ अनुपस्थित)


अप्रैल १८, १९६१


प्रिय श्री नाकानो,

मैं ९वें पल के आपके पत्र की यथोचित प्राप्ति में हूं और आपने मेरे लिए जो कुछ कहा है, उसके लिए मैं आपका आभारी हूं। मैं एक विनम्र प्राणी हूं और मैं इस संबंध में सिर्फ अपना काम करने की कोशिश कर रहा हूं क्योंकि मेरे आध्यात्मिक गुरु श्री भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी महाराज ने ऐसा आदेश दिया था।

जैसा कि अपने चाहा है, आपके पत्र की प्राप्ति पर, आपके देश के दो संबंधित मेयरों को एयर मेल द्वारा दो पत्र मैंने तुरंत भेज दिए हैं। चिट्ठी की कॉपी भी इसमें संलग्न है, जैसा कि आपने चाहा है।

जबकि मैं, आपके द्वारा मेरे लिए की जा रही स्वागत व्यवस्था के लिए बहुत अधिक उत्साह महसूस कर रहा हूं, मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि मेरा मार्ग व्यय जो लगभग ३५००/- रुपये के पास है, वह अभी तक तय नहीं हुआ है।

मैंने मदद के लिए एक आवेदन पत्र भारत सरकार को सौंपा है, और मेरे आवेदन की प्रति भी इसके साथ भेजी जा रही है। मैंने डॉ. एस. राधाकृष्णन को एक निजी पत्र भी लिखा। इस संबंध में राधाकृष्णन से मुझे जो उत्तर मिला है, वह भी संलग्न है।

ये सभी मेरे लिए बहुत उत्साहजनक नहीं हैं। इसलिए आज मैं उपराष्ट्रपति को व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए गया, लेकिन उन्होंने वही कहा जो उन्होंने अपने पत्र में लिखा है। हालाँकि यह मामला अभी पूरी तरह से निराशाजनक नहीं है लेकिन मैं यह सोचकर अपने दिमाग में परेशान हूँ कि मैं सरकार के मामले में क्या करूँ, जब वह मदद करने से इनकार कर रही है। इसलिए मैं इस संबंध में आप से उचित सलाह ले रहा हूं। डॉ. एस. राधाकृष्णन ने मुझसे कहा कि आपने उन्हें भी अपने कांग्रेस में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था और उनका सुझाव है कि मार्ग व्यय का भुकतान शायद आप ही करेंगे।

कांग्रेस की आशा और अपेक्षा निस्संदेह बहुत ही शानदार है और मैं चाहता हूं कि मैं इस अवसर का उपयोग संपूर्ण मानव समाज के सामान्य कल्याण के लिए कर सकूँ। मैंने अपने विचारों को आधिकारिक रूप से मेरे बयानों में पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है जो पहले से ही प्रकाशन के लिए आपके पास भेजे गए हैं और मेयर के पत्र में भी यह विचार व्यक्त है, जिसकी प्रति भी संलग्न है।

एक संन्यासी के रूप में मेरे पास खर्च के लिए कोई व्यक्तिगत पर्स नहीं है। इन परिस्थितियों में यदि सरकार ने मार्ग व्यय भुकतान की मदद करने से इनकार कर दिया, तो मुझे आपसे ही माँगना होगा अन्यथा मेरा कांग्रेस में जाना केवल सपने में ही खत्म हो जाएगा। मुझे राजनेताओं और विशेषकर भारतीय राजनेताओं के व्यवहार पर बहुत कम विश्वास है।

डॉ. एस. राधाकृष्णन की बातचीत से मुझे यह प्रतीत हुआ कि सरकार निजी व्यक्तियों द्वार आयोजित किए जाने वाले इस तरह के सम्मेलन को मंजूरी नहीं देती है और वे इस तरह के कांग्रेस में भाग नहीं लेते हैं। मैं एक सप्ताह तक उनके अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा करूंगा, तब मामला स्पष्ट होगा, हां या नहीं।

आपने मेरी तस्वीर और व्यक्तिगत इतिहास भेजने का अनुरोध किया है और इसके लिए आपका धन्यवाद। मैं कुछ (वर्तमान) तस्वीरों को काट कर भेज रहा हूं, जो प्रेस में दिखाई दिए। यदि ये आपके उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं, तो आप मूल निगेटिव फोटो से एक ताज़ा प्रोमो-कॉपी प्राप्त कर सकते हैं, जिसे इसके साथ भी भेजा गया है। अपने व्यक्तिगत इतिहास के बारे में मैं संक्षेप में बताने की अनुमिति माँगता हूँ: मैं कलकत्ता में १ सितंबर १८९६ को अपने पिता स्वर्गीय गौरा मोहन देव और माँ रजनी देवी के तीसरे बेटे के रूप में पैदा हुआ था, जो कलकत्ता के एक बहुत ही सम्मानित स्वर्ण व्यापारी अभिजात वर्ग के परिवार में थे। मैं स्कॉटिश चर्च कॉलेज (बी. ए. १९२०) में शिक्षित हुआ था और नेताजी सुभाष चंद्र मेरे कॉलेज के साथी थे। मैंने १९२१ में महात्मा गांधी से प्रभावित होकर शिक्षा को छोड़ दिया और कुछ समय के लिए राष्ट्रीय मुक्ति और अन्य सामाजिक सेवा आंदोलनों में शामिल हो गया। मैं सोशल यूनियन आंदोलन का सचिव था, जिसमें स्वर्गीय श्री जे. चौधरी बार-एट-लॉ अध्यक्ष थे। इस आंदोलन में पटेल (विट्ठलभाई) बिल के पक्ष में अंतर्जातीय विवाह के लिए बड़ी हलचल थी। मेरा विवाह १९१८ में छात्र जीवन में राधारानी देवी के साथ हुआ था और वह कलकत्ता में अपने बेटे और बेटियों के साथ पाँच बच्चे और कुछ नाती पोते के साथ हैं। मेरी शिक्षा (१९२१) के बाद मुझे डॉ. बोस प्रयोगशाला कलकत्ता में सहायक प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया और फिर रासायनिक लाइन में अपने निजी व्यवसाय में लगा। मैं रासायनिक और औषधीय संरचना में एक शोध छात्र था और भारत में पहली बार, मैंने मेडिकल पेशे में गैडिन की तैयारी शुरू की। मैं १९२२ में अपने आध्यात्मिक गुरु भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी से मिला और उन्होंने चाहा कि मैं दुनिया भर में सभी भौतिकवादी पुरुषों के ज्ञानवर्धन के लिए भगवान चैतन्य द्वारा शुरू किए गए आध्यात्मिक आंदोलन का प्रचार करूं। उन्होंने धीरे-धीरे मेरे मन को भौतिक से आध्यात्मिक में बदल दिया और मुझे दस साल की पूर्ण संगति के बाद १९३३ में उनके शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया गया। उन्होंने १९३६ में इस दुनिया को छोड़ दिया और अंग्रेजी में इस मिशन को समझाने के लिए जोर दिया। मैंने १९४४ में अपने पेपर बैक टू गॉडहेड की शुरुआत की और १९५४ में अपने आध्यात्मिक गुरु के आदेश को अमल करने के लिए पूरी तरह से घर छोड़ दिया। तब से मेरा मुख्यालय वृंदाबन में है और मैं साहित्यिक कार्यों में समर्पित हूँ।

(पृष्ठ अनुपस्थित)