""मृत्यु के समय, हम जो भी विचार कर रहे हों, वह हम पुनर् (अगले) जन्म का निर्माण कर रहे हैं। इसलिए अपने संपूर्ण जीवन को इस प्रकार निर्मित करो कि अन्तिम समय में हम कम से कम श्री कृष्ण का स्मरण कर सकें। तब निःसंदेह यह निश्चित है कि हम कृष्ण के पास लौट जायेंगे। यह अभ्यास नियमित रूप से करना ही है। क्योंकि जब तक हम शारीरिक रूप से ओजस्वी व बलशाली हैं और हमारी चेतना सही दिशा में तल्लीन है। अत:, अपनी इन्द्रियों की तृप्ति में समय व्यर्थ गवाने के स्थान पर यदि हम कृष्ण भावना के चिन्तन में लगायें तो इसका अर्थ है कि हम इस भौतिक जगत् के दुखों से छुटकारा पाने का समाधान ढूँढ रहे हैं। सदैव कृष्ण चिन्तन में तल्लीन रहना, यही कृष्ण भावनामृत की विधि है।
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