HI/660812 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत बूँदें|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660812BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"वैदिक शास्त्रों के अनुसार मानव जाति का विभाजन चार वर्गों में हुआ है : ब्रह्मचारी, गृहस्थ , वानप्रस्थ और सन्यास। ब्रह्मचारी का अर्थ लगभग विद्यार्थी जीवन से है; गृहस्थ का अर्थ, विद्यार्थी जीवन के पश्चात परिवारिक जीवन से है। वानप्रस्थ, अर्थात सेवा से मुक्त या सेवा से निवृत जीवन और सन्यास का अर्थ है पूर्णतया त्याग का जीवन व्यतीत करना। उनका सांसारिक कर्मों से कोई संबन्ध नहीं होता। अत: ये समाज के यह चार विभिन्न स्तर व वर्ग हैं।  
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Latest revision as of 14:34, 9 March 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
वैदिक शास्त्रों के अनुसार मानव समाज का विभाजन चार आश्रम में हुआ है: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास। ब्रह्मचर्य का अर्थ विद्यार्थी जीवन से है, लगभग विद्यार्थी जीवन; गृहस्थ का अर्थ, जो विद्यार्थी जीवन के पश्चात परिवारिक जीवन जी रहे हैं। वानप्रस्थ, अर्थात सेवा निवृत जीवन। और सन्यास का अर्थ है पूर्णतया त्याग का जीवन व्यतीत करना। उनका भौतिक कार्यों से कोई संबन्ध नहीं है। तो यह मानव समाज के चार विभिन्न स्तर हैं।
660812 - प्रवचन भ.गी. ४.२४-३४ - न्यूयार्क