HI/660827 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
अत: यह इस जगत की दूषित परछाईं है। और क्योंकि यह परछाईं वास्तविकता की है, इसलिए हम इसे सत्य समझ लेते हैं। यह भी सत्य है, परन्तु अस्थाई है। इसे हम भ्रम कहते हैं। परन्तु यदि हम यह समझ लें कि " यह अस्थाई है, तो हमें इससे आसक्ति नहीं करनी चाहिए। यह अस्थाई है। मेरी आसक्ति असत्य से नहीं से बल्कि सत्य, वास्तविकता से होनी चाहिए,"... अत: सत्य केवल कृष्ण हैं। इसलिए हमें स्वयं को अस्थाई से सत्य की ओर ले जाना है।
660827 - Lecture BG 05.07-13 - New York