HI/660831 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660831BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"जो भोजन हम रोग की अवस्था में ग्रहण करते हैं, उसका हम आन्नद नहीं ले पाते। जब हम स्वस्थ होते हैं, तब हम भोजन के स्वाद का आन्नद ले सकते हैं। अत: हमें ठीक होना ही है। हमें रोग मुक्त होना ही है। लेकिन कैसे रोग मुक्त होना है ? हम कृष्ण भावनामृत में रह कर रोग मुक्त हो सकते हैं। कृष्ण भावनामृत होना ही रोग मुक्त होना है। श्री कृष्ण परामर्श देते हैं कि जो भी अपनी इन्द्रियों के आन्नद लेने की इच्छाओं पर नियन्त्रण करने में सक्षम हो सकता है। जब तक यह शरीर है, तब तक इन्द्रिय आन्नद की इच्छा रहेगी, लेकिन हमें अपने जीवन को इस प्रकार से ढालना है कि हम अपने पर नियन्त्रण करने में सक्षम हो सकें। संयम । इससे ही हम अध्यात्मिक जीवन में प्रगति कर सकेंगे, और जब हम अध्यात्मिक जीवन में स्थिर हो जाते हैं तो वह आन्नद असीमित है। उसका कोई अन्त नहीं है।"|Vanisource:660831 - Lecture BG 05.22-29 - New York|660831 - Lecture BG 05.22-29 - New York}}
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{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/660827 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|660827|HI/660902 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|660902}}
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660831BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>| "रोगग्रस्त स्थिति में जब हम भोजन ग्रहण करते हैं, उसका आनंद नहीं ले पाते। जब हम स्वस्थ होते हैं, तब हम भोजन का आस्वादन आनंदपूर्वक ले सकते हैं। अत: हमें स्वस्थ होना ही है। हमें रोग मुक्त होना ही है। और इस रोग से मुक्त कैसे होना है? कृष्ण भावनामृत की दिव्य अवस्था में स्थित होकर। वह इलाज है। इसलिए कृष्ण यहाँ उपदेश देते हैं कि, जो भी अपनी इन्द्रिय भोग की इच्छाओं पर नियंत्रण करने में सक्षम होता है। जब तक यह शरीर है, तब तक इन्द्रिय भोग की इच्छा रहनेवाली है, किन्तु हमें अपने जीवन को इस प्रकार से ढालना है कि, हम स्वयं पर नियंत्रण करने में सक्षम हो। सहनशीलता। जिससे हम अपने अध्यात्मिक जीवन में प्रगति ला सकते है, और जब हम अध्यात्मिक जीवन में स्थिर हो जाते हैं, तब वह आनंद असीम होता है। जिसका कोई अन्त नहीं है।" |Vanisource:660831 - Lecture BG 05.22-29 - New York|660831 - प्रवचन भ.गी. ५.२२-२९ - न्यूयार्क}}

Latest revision as of 15:56, 25 July 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"रोगग्रस्त स्थिति में जब हम भोजन ग्रहण करते हैं, उसका आनंद नहीं ले पाते। जब हम स्वस्थ होते हैं, तब हम भोजन का आस्वादन आनंदपूर्वक ले सकते हैं। अत: हमें स्वस्थ होना ही है। हमें रोग मुक्त होना ही है। और इस रोग से मुक्त कैसे होना है? कृष्ण भावनामृत की दिव्य अवस्था में स्थित होकर। वह इलाज है। इसलिए कृष्ण यहाँ उपदेश देते हैं कि, जो भी अपनी इन्द्रिय भोग की इच्छाओं पर नियंत्रण करने में सक्षम होता है। जब तक यह शरीर है, तब तक इन्द्रिय भोग की इच्छा रहनेवाली है, किन्तु हमें अपने जीवन को इस प्रकार से ढालना है कि, हम स्वयं पर नियंत्रण करने में सक्षम हो। सहनशीलता। जिससे हम अपने अध्यात्मिक जीवन में प्रगति ला सकते है, और जब हम अध्यात्मिक जीवन में स्थिर हो जाते हैं, तब वह आनंद असीम होता है। जिसका कोई अन्त नहीं है।"
660831 - प्रवचन भ.गी. ५.२२-२९ - न्यूयार्क