HI/660831 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जो भोजन हम रोग की अवस्था में ग्रहण करते हैं, उसका हम आन्नद नहीं ले पाते। जब हम स्वस्थ होते हैं, तब हम भोजन के स्वाद का आन्नद ले सकते हैं। अत: हमें ठीक होना ही है। हमें रोग मुक्त होना ही है। लेकिन कैसे रोग मुक्त होना है ? हम कृष्ण भावनामृत में रह कर रोग मुक्त हो सकते हैं। कृष्ण भावनामृत होना ही रोग मुक्त होना है। श्री कृष्ण परामर्श देते हैं कि जो भी अपनी इन्द्रियों के आन्नद लेने की इच्छाओं पर नियन्त्रण करने में सक्षम हो सकता है। जब तक यह शरीर है, तब तक इन्द्रिय आन्नद की इच्छा रहेगी, लेकिन हमें अपने जीवन को इस प्रकार से ढालना है कि हम अपने पर नियन्त्रण करने में सक्षम हो सकें। संयम । इससे ही हम अध्यात्मिक जीवन में प्रगति कर सकेंगे, और जब हम अध्यात्मिक जीवन में स्थिर हो जाते हैं तो वह आन्नद असीमित है। उसका कोई अन्त नहीं है।"
660831 - Lecture BG 05.22-29 - New York