HI/661007 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६६‎]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६६‎]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/661007BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"इस देह की चार मूल आवश्यकताएँ हैं: हमारे लिए कुछ खाना आवश्यक है; हमारे लिए विश्राम करना आवश्यक है; थोड़े समय के लिए निद्रा ज़रूरी है; दुश्मन से स्वयं का रक्षा करना और हमें संभोग की सुविधा मिलनी भी अनिवार्य है। शरीर को संतुलित रखने के लिए यह सब आवश्यक है। लेकिन जो इस भौतिक जगत् से मुक्ति पाना चाहता है वह इनका भोग अत्यधिकता में नहीं कर सकता। कुछ नियन्त्रण होना चाहिए।"|Vanisource:661007 - Lecture BG 07.11-16 - New York|661007 - Lecture BG 07.11-16 - New York}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/661002 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|661002|HI/661009 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|661009}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/661007BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>| "इस शरीर के चार आवश्यकताएँ हैं: हमारे लिए कुछ आहार आवश्यक है; विश्राम करना आवश्यक है, थोड़े समय के लिए निद्रा ज़रूरी है; शत्रु से स्वयं की रक्षा करना और हमें संभोग की सुविधा मिलनी भी ज़रूरी है। शरीर को संतुलित रखने के लिए यह सब आवश्यक है। किन्तु जो इस भौतिक बंधन से मुक्त होना चाहता है, वह इनका अत्यधिक उपयोग नहीं कर सकता। नियंत्रण होना ही चाहिए।" |Vanisource:661007 - Lecture BG 07.11-16 - New York|661007 - प्रवचन भ.गी. ७.११-१६ - न्यूयार्क}}

Latest revision as of 11:40, 28 July 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इस शरीर के चार आवश्यकताएँ हैं: हमारे लिए कुछ आहार आवश्यक है; विश्राम करना आवश्यक है, थोड़े समय के लिए निद्रा ज़रूरी है; शत्रु से स्वयं की रक्षा करना और हमें संभोग की सुविधा मिलनी भी ज़रूरी है। शरीर को संतुलित रखने के लिए यह सब आवश्यक है। किन्तु जो इस भौतिक बंधन से मुक्त होना चाहता है, वह इनका अत्यधिक उपयोग नहीं कर सकता। नियंत्रण होना ही चाहिए।" ।
661007 - प्रवचन भ.गी. ७.११-१६ - न्यूयार्क